________________
२०९
प्रतिध के पश्चात् । मुखासन ( पालखी) में बैठे हुए संघपति देसलशाह संघ के पीछे पीछे भा रहे थे । आचार्य श्रीसिद्धसूरि प्रमुख मुनीश्वर और प्रावक देवालय सहित शोभ रहे थे। चामरधारी शीघ्रता से नम्रतापूर्वक चामर दुला रहे थे । मृदंग, भेरी, पहड आदि बाजिंत्र बज रहे थे । तालाचरों से नृत्य कराते हुए जिस समय देसलशाह
और हमारे चरितनायक नगर में प्रविष्ट हुए तो यह सुध्वनि सुन कर घरों के लोग ऊपर चढ़ कर संघ समुद्र की शोभा निरखते थे। उन का हर्ष हृदय में नहीं समाता था। नगर कुंकुम गहुँली, वंदनवार, वितान, पूर्णकलश और वोरणों से शोभायमान हो रहा था । घर घर में ध्वजा और पताकाएँ वायु में फहराती हुई संघपति के यश को फैला रही थी। मार्गभर में महिलाएँ बलैयों ले रही थीं । सज्जन पुरुष दोनों की भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे थे जो चारों ओर से सुनाई देती थी। हमारे चरितनायक इस प्रकार मंगल ग्रहण करते हुए अपने प्रावास में प्रविष्ट हुए । सौभाग्यबती त्रियोंने दीपक, दूब, इचर और चन्दन आदि थाल में रख कर हमारे चरितनायक के पुण्यशाली बलाटपर तिलक किया। श्री देसनशाहने पंचपरमेष्ठि महामंत्र को जपते हुए गृह प्रवेश किया ।
देसलशाहने देवालयमें से श्रीमादिजिन को उतार कर कपर्दी यक्ष और सत्यकादेवी सहित गृहमन्दिर में स्थापित किये। पुत्रों सहित सुभासन पर बैठे हुए संघपति से मिलने के लिये सब लोग ठट्ठ के ठट्ट आ पा कर नमस्कार और आशीर्वादपूर्वक
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com