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________________ २०८ समरसिंह प्रणाम कर उस तीर्थ पर विधिपूर्वक महादान, महापूजा और महाध्वजा कर संघपति हारिज ग्राम को गये और वहाँ जा कर श्रीऋषभप्रभु को प्रणाम कर पत्तनपुर की ओर प्रयाण किया। पत्तनपुर के समीप सोइलग्राम में संघपति श्रीदेसलशाहने संघ को ठहराया । संघ सहित देसलशाह को कुशलक्षेम पूर्वक भाया हुआ जान कर पत्तनपुर निवासी स्वागत के लिये सामने आये । उत्साह और उत्कंठा से आद्रिद हुए पत्तनपुर निवासियोंने श्रीदेसलशाह और श्रीसमरसिंह के चरणकमलों को चंदन और सुवर्ण कमलों से पूजा । उनके चरणकमलों को अपने हाथों से छूकर वे ऐसा समझते थे कि हमने विमलाचल की यात्रा की है। हर्ष पूर्वक वे लोग दोनों के गले में पुष्पहार डालते थे । वे मिष्टान्न मादि उपस्थित कर स्वागत करने के लिये परम रुचि प्रदर्शित कर रहे थे । उस नन में ऐश कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्य, शूद्र या यवन नहीं होगा जो देसलशाह और समरसिंह के कार्यों से प्रसन्न हो कर उन के स्वागत के लिये सामने न आया हो। देसलशाह तथा हमारे चरितनायकने भी वस्त्र, ताम्बूल आदि दे कर उन सब का सन्मान किया । शुभ मूहूर्त में पुर प्रवेश हुमा। हमारे चरितनायक घोड़े पर सवार संघ के आगे चलते हुए खूब शोभ रहे थे । खान के तछान्त्यै प्रकटीकृतोऽथ सहसा तस्नानवारिच्छटासंयोगेन अनोऽखिलोऽपि विदधे नीरुक् स पाश्रिये ॥ ___ भामिनंदनोदार प्रबंध प्रस्ताव ५ श्लो० ६३९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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