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________________ १० १७६ १७८ १८० १८४ विषय पृष्ट विषय पृष्ट अवशिष्ट संख्या ३ | अष्टमतप और शासनदेवी उपकेशगच्छाचार्यों के निर्माण किये। फलही की पूजा हुए ग्रन्थ १३३ | शत्रुजयपर मूर्ति का निर्माण १७२ अवशिष्ट संख्या ४ छटा अध्याय. उपकेशगच्छाचार्यों द्वारा कराई हुई जिनालयों और जिन प्रतिमाओं प्रतिष्टाः १७५ की प्रतिष्टा आचार्य और संघपति १७५ प्रतिष्टा के प्रमाण शिलालेख शुभ मुहूर्त का निर्णय चतुर्थ अध्याय. शत्रुजय का संघ जैनाचार्यों का संघ के साथ शत्रुजय तीर्थ के उद्धार का संघपतियों के साथ यात्रा फरमान | खंभात और देवगिरि का संघ पाटण तीर्थपति की यात्रा गुजरात में यवन साम्राज्य १४६ प्रतिष्टा की विधि १८७ अलपखान और समरसिंह १४७ दस दिनों का महोत्सव वि. सं. १३६६ का शत्रुजय भंग १४८ याचकों को दान १९५ प्राचार्य सिद्धसूरि के समक्ष समरसिंह की भीष्म प्रतिज्ञा १५१ सातवाँ अध्याय. अलपखान का फरमान १५२ संघ सभा और मूर्ति के लिये विचार १५६ प्रतिष्टा के पश्चात् १६८ संघ आज्ञा सिरोधार्य दान और इनाम १९८ पंचम अध्याय. श्री गिरनार तीर्थ की यात्रा देशलशाह को पौत्र की वधाई २०१ फलही और मूर्ती १६३ | मुग्धराज और समरसिंह २०१ राणा महीपालदेव की उदारता १६३ देवपत्तन में प्रवेश मंत्री पाताशाह और फलही १६५ | अम्बादेवी का चमत्कार १४५ १८५. प्रार्थना के समक्ष समर- २०३ २०५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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