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________________ प्रतिय। संघपति देसलशाह सेरीसा नगर में भगवान् की स्नात्रपूजा, बड़ी पूजा भादि महोत्सव पूर्वक कर के महा ध्वजा अर्पित कर के आरती की । समरसिंहने भोनन तथा अन्न आदि का दान दिया। एक सप्ताह के पश्चात् संघ देसलशाह सहित क्षेत्रपुर में पहुँचा। वहाँ पर भी जिनेन्द्र भगवान की पूजा कर संघ घोलके ग्राम में पहुँचा। इसी प्रकार मार्ग के प्रत्येक नगर और प्राम में चैत्य परिपाटी कर के महाध्वजा, पूजा आदि का लाभ लेता हुआ संघपति देसलशाह संघ सहित पिप्पलालीपुर पहुंचे। इस नगर में श्री पुण्डरिक गिरि दृष्टिगोचर होता है। देसलशाह इस गीरि के दर्शन कर परम प्रसन्न हुए । उन के साहस में सुधा का संचार हुमा। पीयूषवर्षा से द्रवित देसलशाह के मन मन्दिर में आगे बढ़ने १ तैरेव सम्मेतगिरे विशति स्तीर्थनायकाः । मानिन्यिरे मन्त्रशक्त्या त्रयः कान्तीपुरी स्थिताः ॥ तदादीदं स्थापितं सत् तीर्य देवेन्द्रसूरिभिः । देवप्रभावविभविसम्पन्न जनवाच्छितम् ।। ___ नाभिनंदनोद्धार प्रबंध (प्रस्ताव ४ र्थ, श्लो० ६४६-५१) रत्नमंदिर गणी सेरीमा के सम्बन्ध में इस प्रकार फर्माते हैं--" तथा सेरीसक तीर्थ देवचन्द्रक्षुलकेनाराधितचक्रेश्वरी दत्तसर्वकार्य सिद्धिवरेण विभूमिमय-चतुर्विंशतिगुरुकायोत्सर्गि श्री पार्थादिप्रतिमासुन्दरः प्रासाद एकरात्रि मध्ये कृतः। तत् तीर्थ कलिअलेऽपि निस्तुल प्रभावं दृश्यते । " -उपदेशतरंगिणी जो य० वि० ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित हुई है उस के पृष्ठ ५ से। अर्थात्-" सेरीसा तीर्थ, श्री देवचंद्र चुल्लक द्वारा भाराषित चक्रेश्वरी के दिए हुए वरदान के प्रभाव से चौबीसी तथा खड़े काउस्सग्ग मते पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा आदि का स्थापन सहित तीन सुंदर भूमिवाला भवन एक रात हो में तैयार हो गया था। यह तीर्थ इस कलिकाल में भी अतुल प्रभाव शाली बात होता है।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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