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समरसिंह. भोजन दिया जाता है। " भूखों को भोजन कराने के लिये एक दानशाला की व्यवस्थित सुन्दर योजना की गई थी।
इस प्रकार रात दिन चलते हुए देसलशाह संघ सहित सेरीसा गाँव में पहुँचे । इस ग्राम में पार्श्व प्रभु की प्रतिमा ( काउसग्ग ध्यानावस्थ ) है। धरणेन्द्र से पूजित जो पार्श्व प्रभु अब तक कलिकाल में सकल ( सप्रभाव ) विद्यमान हैं, इन की प्रतिमा एक सूत्रधारने अपनी आँखों पर पट्टी बांध कर देव के आदेश से केवल एक ही रात भर में घड़ कर तैयार करदी थी । मंत्र शक्ति से सकल इच्छित प्राप्त करनेवाले श्रीनागेन्द्रगण के अधीश आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिजीने इस प्रतिमा की प्रतिष्टा की थी। इन्हीं चमत्कारी प्राचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिजीने मंत्रबल से श्रीसम्मेतगिरि से बीस तीर्थंकरों के बिंब तथा कांतीपुरी में स्थित तीर्थकरों के तीन बिंब यहाँ पर लाए थे । तभी से यह तीर्थ पूज्यपाद आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिजीने स्थापित किया है जो देवप्रभाव से भव्य जनों के मनोरथों को पूर्ण करता है।
१ संघप्रयाणकेष्वेकं दीव्यमानेष्वहनिशम् । श्रीसेरीसाह्वयस्थान प्राप देसल सङ्घपः । श्रीवामेय जिनस्तस्मिन्नूर्ध्व प्रतिमया स्थितः । धरणेन्द्राश संस्थ्यहिः सकलेयः कलावपि ॥ यः पुरा सूत्रधारेण पाच्छादित चक्षुषा । एकस्यामेव शर्वयों देवादेशादघदयत ॥ श्रीनागेन्द्र गणाधिशः श्रीमद् देवेन्द्ररिभिः ।
प्रतिष्ठितो मन्त्रशकि सम्पन्न सकलेहितः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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