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समरसिंहकरने वाले पदस्थ प्रायः सब मुनि भी इस यात्रा में सम्मिलित हुए थे । शुभ दिन के मङ्गलमय मुहूर्त को देख कर देसलशाह के साथ उपकेशगच्छाचार्य श्री सिद्धसरिने प्रस्थान किया। उस समय देसलशाहने प्राचार्यश्री के शुभप्रस्थान का महामहोत्सव बड़े धूम धाम से किया था।
संघपति जैत्र और कृष्ण भी, संघपति श्री देसलशाह के सौजन्य व्यवहार से मुदित हो यात्रार्थ चले थे। मोतियों के गुण संयोग करनेवाला हरिपाल, चतुर सं० देवपाल, श्रीवत्सकुल के स्थिरदेव के सुपुत्र लुंढक, सोनी प्रह्लादन सत्यभाषी श्रावककल भूषण सोदाक, धर्मवीर श्रीवीर श्रावक और दानेश्वरी देवराज भी समरसिंह के अनुरोध से यात्रा में प्रसन्नता पूर्वक सम्मिलित हुए इतना ही नहीं वरन् गुजरातप्रान्त में से प्रायः सब श्रावक सम्मिलित हुए थे। इसी प्रकार से दूसरे प्रान्तों में से भी बड़े बड़े संघ मा पा कर सम्मिलित हुए तब संघ को आगे चलाना शुरु किया। जिस प्रकार मण्डप को खड़ा रखने के आधारभूत स्तम्भ होते हैं उसी प्रकार इस संघ के चारों महिधर थे जिन के नाम जैत्र, कृष्ण, लुंढक और हरिपाल थे । इन चारों धर्मवीरोंने संघ सेवा में खूब ही मदद की।
अलपखान को अनुशापित करने के उद्देश से हमारे चरित नायक भेंट करने के लिये विपुल सामग्री लेकर राजमन्दिर में जा उपस्थित हुए और भेंट के पदार्थ व द्रव्य खान के सम्मुख रखे । खान इस भेंट से संतुष्ट हो कर समरसिंह को भव सहित बढ़िया
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