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________________ प्रतिथ १७९ पालने वाले आचार्य श्री रत्नाकरसूरि भी संघ के साथ थे । मौरवयुक्त अंतःकरण वाले श्री देवसूरि गच्छ के आचार्य श्री पद्मचंद्रसूरि, जिनदर्शन के उत्कट अभिलाषी वीर षं (सं) ढेर गच्छ के श्राचार्य श्री सुमतिसूरि, भावड़ा गच्छ की विभूति को प्रदर्शन करनेवाले आचार्य श्री वीरसूरि भी प्रसन्नतापूर्वक यात्रा में चले थे । थारपद्र गच्छ के आचार्य श्री सर्वदेवसूरि और ब्रह्माण गच्छ के आचार्य श्री जगत्चन्द्रसूरि भी संघ में चले थे । श्री निवृत्ति गच्छ के आचार्य श्री आम्रदेवसूरि जिन्होनें देसलशाह की यात्रा का रास बनाया है तथा नाग कगरण रूपी आकाश को भूषित करने में सूर्य समान आचार्य श्री सिद्धसूरि भी साथ ही थे । बृहद् गच्छ के मनोहर व्याख्यानी आचार्य श्री धर्मघोषसूरि, ' राज्यगुरु सदृश उपनाम के धारी श्री नागेन्द्र गच्छ के भूषण आचार्य श्रीप्रभानंदसूरि, श्री हेमचन्द्रसूरि के आचार्य पद के शुद्ध भावना वाले पवित्र श्री वज्रसेनसूरि आचार्य तथा इस के अतिरिक्त दूसरे गच्छों के गण्यमान्य अनेक धर्मधुरंधर आचार्य प्रभृति भी देसलशाह की यात्रा में साथ थे । " चित्रकूट, वालाक, मरुधर और मालवा प्रदेश में बिहार १ देसलशाह की यात्रा का रास जिस का दूसरा नाम समरा राम्र भी है, श्री निवृत्तिगच्छ के भूषण श्री प्रम्ब ( आम्र ) देवसूरिने विक्रम संवत् १३८३ के पहले लगभग विक्रम संवत् १३७१ के चैत्र कृष्णा ७ की यात्रा कर पाटण पहुंचने के बाद तुरन्त ही बना लिया होगा, ऐसा ज्ञात होता है । यह रास विक्रम को १४ वीं शताब्दी की प्राचीन और मनोहर गुजराती भाषा में होने के कारण गुजराती साहित्य में उच्च स्थान प्राप्त कर सकता है। परिशिष्ट में मूल रास (संशोधित) सम्पूर्ण देखिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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