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________________ १७७ प्रतिट । बुलाकर प्रतिष्टा के लिये मुहूर्त दिखलाया । सर्व सम्मति से शुभ मुहूर्त निकलने पर प्रधान ज्योतिषी से लमपत्रिका तुरन्त लिखबाई गई । लमपत्रिका ग्रहण करते हुए देसलशाहने बड़ा उत्सव मनाया तथा ज्योतिषियों को द्रव्य आदि दे तोषित किया। प्रतिष्टा का समय निकट ही था अतएव देसलशाहने सर्व प्रान्तों में अपने कौटुम्बिक जन, पुत्र, पौत्र और कर्मचारियों को भेज कर संघ को निमंत्रण दिया । देसलशाहने जो एक नया देवालय बनवाया था वह रथ की तरह था। उस देवालय को श्राचार्यश्री सिद्धसूरि के समक्ष लेजा कर पोषधशाला में वासक्षेप डलवाया । शुम दिन को देवालय का प्रस्थान कराना निश्चित हुा । निश्चित दिन भाने पर प्रस्थान करवाने के लिये देसलशाहने पोषधशाला में सर्व संघ को एकत्रित किया । देसलशाहने भक्तिपूर्वक श्री संघ का बहुत सत्कार किया और पश्चात् स्वयं आचार्य श्री सिद्धसूरि के आगे वासक्षेप डलवाने के लिये प्रस्तुत हुए। देसलशाह के ललाटपर शुभ हेतु श्री संघ की ओर से तिलक किया गया। प्राचार्यश्री सिद्धसूरिजीने स्वयं अपने करकमलों से देसलशाह के मस्तक पर ऋद्धि सिद्धि और कल्याण करनेवाला वासक्षेप डाला। तत्पश्चात् हमारे चरितनायक भी वासक्षेप के हेतु आचार्यश्री के सम्मुख पधारे । आचार्यश्रीने उनके मस्तक पर वासक्षेप डालते हुए यह शुभाशीर्वाद दिया कि " तू, सब संघपतियों में श्रेष्ठ हो।" इस के बाद शुभ मिति पौष कृष्णा ७ को मङ्गल मुहूर्तानु. १२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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