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________________ २७४ समरसिंह. उतरवाई और उस फलही को छोटी इस हेतु करवाई कि पर्वतपर चढ़ाते समय भार कुछ हलका हो । इतना करनेपर भी उस फल ही को ८४ श्रमजीवियोंने पर्वत के ऊपर ६ दिनमें पहुँचाई । उन स्कंधवाहन श्रमजीवियों का भोजन सत्कार थादि भली भाँति किया गया था । कहते हैं कि जावड़शाहने इतनी ही भारी फलही पहले इस पर्वतपर ६ महीने में चढ़वा पाई थी। प्रस्तुत फलही प्रमुख देवमन्दिर के मुख्य द्वारके तोरण के सामने रखी गई । उसको पड़ने के लिये शिल्पविज्ञान विज्ञ पुरुष विद्यमान थे। उन्होंने मूर्ति बनाना प्रारम्भ किया। फिर मुनि बालचंद्र की आज्ञानुसार वह सुघटित बिंब मुख्य स्थानपर लाया गया। इस अवसर पर कुछ विघ्न संतोषियोंने उपद्रव करना चाहा परन्तु प्रभावशाली आचार्यश्री सिद्ध सूरीश्वरजी और विमलमति देसलशाहके पुण्य प्रतापसे, साहसिक शाहणपाल की प्रखर बुद्धिमानीसे तथा पुरुषसिंह श्री समरसिंह के शोजसे दुर्जन लोग दुष्टता त्यागकर कार्य करनेवाले हो गये। मुनिवर्य बालचंद्रजीने विबको मूल स्थान पर पधराकर देसलशाहको समाचार भेजे । यह संदेश सुनकर देसलशाहने अपनी इच्छा प्रकट की कि अब मैं चतुर्विध संघ सहित तीर्थाधिराज की यात्रा कर तीर्थनायक के बिंबकी प्रतिष्ठा कर अपने मानव वनको सफल करूँगा। -efere Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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