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________________ समर का फरमान । १५९ नायकने सर्व संघ के समक्ष यह विनती की, "इस दूषमकाल में अत्याचारी यवनोंने श्री वीर्थराज शत्रुजय का उच्छेदन किया है। तीर्थनायक के उच्छेदित होनेसे सारे श्रावकों के हृदयपर बड़ा बुढ़ियाके पैर धोए । दस दिनतक बुढ़िया मंत्रीश्वर के घर ठहरी । अातिथ्य सत्कार में मंत्रीश्वरने किसी भी प्रकार की कमी नहीं रखी । दस दिनों में मंत्रीश्वरने ५०० घोड़े एकत्रित करलिये । इसके अतिरिक्त गंव श्रेष्ठ कर्पूर और बहु मूल्य वस्त्र आदि भी संग्रह किये । मंत्रीश्वरने पूछा, “ मा, आप अब जा रही हैं यदि आपकी इच्छा हो और सभ्यता पूर्वक मेरा खानसे समागम हो तो मैं भी तुझे पहुँचाने चल सकता हूँ।" बुढ़ियाने उत्तर दिया, “ वहाँ तो सब प्रकारसे मेरा ही आधिपत्य है। खेच्छा से हर्ष पूर्वक चलिये। आपका यथायोग्य आदर सत्कार भी किया जावेगा अतः जरूर चलिये ।" इस सम्बन्ध में मंत्रीश्वरने राजा विरधवल की अनुमति भी लेली । मंत्रीश्वरने राजमाता के साथ जाना स्थिर किया । राजमाताने खंभात से मंत्रीश्वर सहित प्रस्थान किया । जब दिल्ली केवल ४ मील दूर रही तो सुलतान मौजदीन अपनी माता को लेने के लिये सामने आया । मौजदीनने माके चरण छूए और विनयपूर्वक सलाम कर पूछा, " कहो माता ! यात्रा तो सुखपूर्वक हुई ।" माताने गम्भीरतापूर्वक उत्तर दिया, “मुझे यात्रा में सबतरह की सुविधा और सुख क्यों न हो जब कि मेरा पुत्र तो दिल्लीश्वर है और गुजरात में बस्तुपाल जैसे पुरुष सिंह मौजूद हैं।" मौजर्दान ने आश्चर्य चकित हो कर पूछा, “ वस्तुपाल कोन है ?" माताने वस्तुपाल की कृतज्ञता को विस्तार पूर्वक प्रकट कर सारा वृतान्त मंत्रीश्वर की उदारता का कह सुनाया। मौजदीन सुलतानने पूछा-" माजी; ऐसे पुरुष को यहाँ क्यों नही लाई ? " माताने उत्तर दिया, “ क्यों नहीं, मैं उसे साथ में ले आई हूँ। अभी घुड़सवार भेज कर इस स्थानपर बुलवाती हूँ !" वस्तुपाल आए और सुलतान से मिले । मंत्रीश्वरने विपुल सामग्री जो संभात से एकत्रित कर लाई हुई थी भेट में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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