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________________ उदार का फरमान । १५५. किया कि गुरुकृपा से हमारे भाग्य का सतारा भी तेज है कि जिससे यह दूभर कार्य बिना परिश्रम के इतना सरल हो गया । प्रिय पुत्र समर ! तू वास्तव में पूर्ण सौभाग्यशाली और पूण्यवान है। इस के अतिरिक्त नगर के अन्य जन भी अति हर्षित हुए । सब को विदाकर हमारे चरितनायक पौषधालय में पधारे । वहाँ श्राचार्य श्री सिद्धसूरि विराजमान थे। समरसिंहने विधिपूर्वक वंदना कर फरमान प्राप्त होने की सूचना सूरिजी को की। यह समाचार सुन कर सूरिजी तथा अन्य श्रोता बहुत प्रसन्न हुए । सूरिती को विशेष प्रसन्नता इस कारण हुई कि खान यद्यपि देवद्वेषी है तथापि उसने समरसिंह के लिये इतनी उदारता प्रदर्शित की है । सूरिजीने इस घटना से यह निष्कर्ष निकाला कि हमारे भाग्य इस समय अभ्युदय की ओर हैं । सूरिजी प्रशंसायुक्त वाक्योंद्वारा सारगर्भित विवेचन कर समरसिंह को विशेष प्रोत्साहित किया । नगर में जहाँ तहाँ समरसिंह के बुद्धिचातुर्य की प्रशंसा होने लगी। समरसिंहने सूरिजीसे सम्मति मांगी कि मंत्रीश्वर वस्तुपालने लाकर भोयरे में एक अक्षतांग मम्माणशैल फलही रखी है १ मंत्रीश्वर वस्तुपालने मम्माण शैल फलही को इस प्रकार प्राप्त किया था : ___" नागपुर ( नागौर ) नगर में पूनड़ नाम का श्रावक रहता था जो शाह देल्हा का पुत्र था। उस समय के यवन सम्राट् मौज़दीन सुलतान की बीबी प्रेमकमला (कला) पूनड़ को अपने भाई की तरह समझती थी। पूनदशाह राज्य की अश्व और गजों की सेनाओं के नायकों तथा राजाओं से आदर की दृष्टि से देखा जाता था । पूनड़शाहने वि. सं. १२७३ में बिंबेरपुर से श्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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