SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंदी संसार की इस ओर रुचि देखकर ही मैंने शत्रुजय तीर्थ के पंद्रहवें उद्धारक स्वनाम-धन्य साहसी समरसिंह का अनुकरणीय जीवन वृतान्त पाठकों के समक्ष रखने का प्रयत्न किया है। समरसिंह को हुए लगभग ६०० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं परन्तु आधुनिक पाठशालाओं आदि में पढ़ाई जानेवाली पुस्तकों में जो ऐतिहासिक कही जाती हैं ऐसे भारत-भूषण नररत्नों का नाम तक नहीं है । इस तरह के भारत हितैषी न मालूम और कितने व्यक्ति इस पिछले ऐतिहासिक युग में हो चुके हैं जिनसे आज अधिकाँश भारतीय विद्वान अपरिचित ही हैं। पुस्तक पढ़ने से आप को भली भांति मालूम होगा कि धर्मवीर श्रीमान् समरसिंहने श्रीशत्रुजय महातीर्थ के उद्धार करवाने में किस प्रकार की दिलचस्पी ऐसे विषम काल में ली थी। क्यों कि यों तो जगद्विख्यात शत्रुजय तीर्थाधिराज के उद्धार करानेवाले तो इन के पहले भी चक्रवर्ती महाराज भरत तथा सगर और पांडवों जैसे वीर पराक्रमी आदि कई महापुरुष हो चुके थे परन्तु जिस समय धर्मद्रोही यवन सैकड़ो तीर्थ, हजारों मन्दिर और लाखों मूर्तियों को दुष्टतापूर्वक नष्ट भ्रष्ट कर रहे थे उस दुःखद समय में चारों ओर प्रतिकूल वातावरण के होते हुए भी अपने बौद्धिक बल और कार्य कौशल से इस महान् तीर्थ के कार्य को आदि से अन्त तक सफलतापूर्वक सम्पादन करने का श्रेय तो हमारे चरित्रनायक को ही है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy