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उमरसिंह आप सदृश योगीराज के होते हुए भी यह विघ्न बार बार कैसे हो जाता है ? श्राप इस के निराकरण का उपाय तुरन्त बताइयें।
सिद्धसूरिजी बड़े विद्याबली और इष्ट बली थे। बाद में इन की बजह से वीरसूरि की दाल नहीं गली । मूर्ति सुन्दर आकृति में सुघड़ता से तैयार हो गई। उस मूर्चि के युगल नेत्रों में लक्ष लक्ष दीनार की दो अद्भुत और आकर्षक मणियों खचित की गई।
तत्पश्चात् प्राचार्य श्री सिद्धसूरिजीने बड़े समारोह से उस मन्दिर में मूर्ति की प्रतिष्ठा की। कदपी के बनाये हुए कुछ शेष कार्य की पूर्ती बाफणा गोत्रिय बह्मदेवने की । देखिये पारस्परिक प्रेम का क्या अनूठा उदाहरण है ! ब्रह्मदेवने कदपी से अनुनय निवेदन किया कि आपने तो मन्दिर बनवा कर अपने मानव जीवन को सफल किया यदि अब कुछ लाभ मुझे भी प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप की कृपा से हो जाय तो बड़ी दया हो ।
१ मद भाग्यमिदं किंवा शरणं किंवनापरं ।
पूज्येषु विद्यमानेषु धर्मविघ्नः कथं भवेत् ॥ ३०९ ॥ २ शुभे लग्नेथसंलग्ने प्रभुश्री सिद्धसूरयः
प्रतिष्टा वीरनाथस्य विधुर्विषिवेदिनः ॥ ३१४ ॥ शक्तो सत्यामपिष्ठि बप्पनागकुलोद्भुषः
ब्रह्मदेवस्य मुहृदो गुटभ्यिर्थ नपामुदा ॥ ३१५ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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