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________________ + समरसिंह ऐसे बसे की गई थी कि राजा अपने महल में खेड़ हुए ही जिन बिम्ब के दर्शन सुगमतापूर्वक कर सकता था। मंदिर तैयार होनेपर राजाने आचार्य श्री कक्कसूरि को बुलवाकर प्रतिष्टा करवाई आपने राजा को ४०० घरों के निवासियों सहित जैन बनाके धर्मकी बहुत उन्नति की । धन्य है हमारे ऐसे प्रचारकों को जिन्होंने जिन - शासन की इस प्रकार अभिवृद्धि की । वहाँ से विहार कर आप राणकगढ़े पधारे । वहाँ का राजा भूट ( शूट ) शूरदेव, सूरीश्वरजी का व्याख्यान सदैव सुना करता था । सदोपदेश के प्रभाव से राजाने मांस मदिरादि का परित्यागन किया । इतना ही नहीं राजाजीने एक मन्दिर बनवा उसमें श्री शांतिनाथ भगवान् की मूर्त्तिकी प्रतिष्टा आचार्यश्री के करकमलोंद्वारा करवाई । आचार्यश्री विहार करते हुए उच्चकोट और मरुकोटे नगर १ नूतनं परिकर च कारयामा सिवा नृपः । श्रीकक स्रीन प्रतिष्ठां चव्यधापयत् । २ सूरी राणकदुर्गेगा द्विहरनथ तत्प्रभुः भुट्टात्वये सुरदेवो याति तं नं तुम त्वहं प्रबुधोय स्वीय पुरे श्रीशान्तिजिनमन्दिरे कारयामास भूपालं प्रातिष्टां विदधे गुरुः । ( उ. चा. श्लोक ६१-६२ ) उचकोटे मस्को श्रीशान्तेर्नेमिनस्तथा म्याहिका भूपकास्पीटशी स्थितिः [उ० चः ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035229
Book TitleSamarsinh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherJain Aetihasik Gyanbhandar
Publication Year1931
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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