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उपकेशगच्छ-परिचय। रित किया जाता है इसके साथ ये अपने गच्छ, प्राचार्य या प्रवर्तक का नाम भी जोड़ देते हैं। आचार्य चन्द्रसूरिके अतिरिक्त नागेन्द्र, विद्याधर और निवृत्ति के भी महा प्रभाविक कुल हुए । इन कुलों में जिनशासन-प्रभावक बड़े बड़े धर्मधुरंधर आचार्य हुए । क्याँ न हो ! आचार्य श्री यक्षदेवर्ति का वासक्षेप और ज्ञान ही इस कद्र प्रभाविक था कि उसे यहाँ सम्यक् प्रकारसे प्रकट करने में लेखनी को उपयुक्त शब्द उपलब्द्ध नहीं होते। यदि वास्तव में देखा जाय तो चन्द्रादि कुलोंपर प्राचार्य यचदेवसूरि का असीम उपकार है।
तत्पश्चात् इस उपकेश गच्छ में देवगुप्तसूरि नामक एक बड़े ही अच्छे प्रभाविक आचार्य हुए जिन्होंने भारत भूमिपर पर्यटन कर जन समाज का बहुत उपकार किया। एकबार आप देवयोगसे कनौजाधिपति महाराजा चित्रांगद से मिले । साक्षात् होनेपर आपने स्वाभाविकतया राजा को ऐसा हृदय प्रभावोत्पादक
१ तदत्वये यक्षदेवरि रासी द्वियां निधिः ।
दश पूर्वघरो वज्रस्वामि भुत्य भववदा । ( उ. चा. श्लो. ७७)
श्री यक्षदेवरिर्वभूव महाप्रभावकर्ता द्वादशवर्षे दुर्मिक्ष मध्ये वज्रस्वामि शिष्य वज्रसेन गुरोः परलोकप्राप्ते यक्षदेवसूरिणा चत्वारि शाखा स्थापिता-(उपकेशगच्छ पट्टावली)
श्री पार्श्वप्रभु के १७ वे पट्टपर श्री यक्षदेवसूरि हुए हैं जिन्होंने वीरात् ५८५ वर्षके बारह वर्षीय दुर्भिक्ष में वनस्वामि के शिष्य वज्रसेन के परलोकवास होनेके पीछे उनके चार प्रधान शिष्यों के, जो सोपारक पट्टन में दीक्षित हुएथे, नामसे चार कुल अयबा शाखाएं स्थापित हुई जिनके नाम ये हैं-नागेन्द्र, चन्द, निवृत्ति और विद्याधर......-विजयानदरिकृत 'जैन-धर्म-विषयक प्रश्नोत्तर' का प्रश्न ८० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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