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उपकेशगच्छ-परिचय। प्रसिद्ध हुआ । क्योंकि ( १ ) आचार्य रत्नप्रभसूरि, ( २ ) यक्षदेवसूरि, (३) ककसूरि, (४) देवगुप्तसूरि और ( ५ ) सिद्धसूरि सबके सब प्रभाविक, लब्धिसम्पन्न और विद्यासागर थे तथा इन्हीं पांचोंने मरुस्थल, संयुक्त प्रान्त, सिन्ध, कच्छ और पञ्जाब
आदि प्रदेशों में असुविधाएँ मेलते हुए पर्यटन कर अनेक प्राणियोंको मिध्यात्वसे मुक्तकर जैनी बनाया था अतः प्रस्तुत उपकेश गच्छके
आचार्यों की वंश-परम्परा इन्हीं पाँच नामों के प्राचार्यों द्वारा चली आ रही है। पट्टावली से पता मिलता है कि इस गच्छ में श्रीरत्नप्रभसूरि नाम के ६, श्रीयद्धदेवसूरि नाम के ६, श्रीककसूरि नाम के २३, श्रीदेवगुप्तसूरि नामके २२ और सिद्धसूरि नामके २२ आचार्य, इस प्रकार ये सब मिलके ७८ प्राचार्य तथा श्रीरत्नप्रभसूरि के पूर्व श्रीपार्श्वनाथ भगवान् के पट्ट पर ५ आचार्य हुए। यानि श्रीपार्श्वप्रभु के पट्ट पर आजतक ८४ भाचार्य हुए । इन प्राचार्य के द्वारा जैनधर्म के बड़े बड़े उल्लेखनीय कार्य सिद्ध हुए जो क्रमसे ये हैं-महाजन संघ की स्थापना शाखा, प्रशाखा के रूप में गोत्र और जातियों का प्रादुर्भाव अनेक ग्रंथों की रचना; भसंख्य मन्दिर एवं मूर्तियों की प्रतिष्टों। इन आचार्यों का विस्तृत विवरण तो एक स्वतंत्र ग्रंथ में ही दिया जाना सम्भव है यहाँ तो विशेष प्रतिभासम्पन्न आचार्यों का ही
१ देखो-उपकेश- गच्छ-पट्टावली । जो जैन साहित्य संशोधक वैमासिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है।
२, ३ और ४ देखो-इसी अध्याय के परिशिष्ट
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