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रेवती - दान-समालोचना
अनुरोध से कुक्कुट शब्द के तीन वनस्पति- अर्थों में से पूर्वोक्त दो को छोड़ कर तीसरे बिजौरे अर्थ का आश्रय लिया है ॥ ४५-४६-४७ ॥
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मांस शब्द का अर्थ
रस का पिण्ड, मांस शब्द का अर्थ है । फल का गर्भ (गूदा गिरी) भी प्राणी के मांस की तरह उसी प्रकार का देखा जाता है ॥ ४८ ॥
वाग्भट्ट नामक वैद्यक ग्रंथ में, त्वचा, मांस, और केसर के लक्षण,. उनके गुणों के साथ, जुदे - जुदे बताये हैं ।
'कुक्कुडमंसए' पद में 'मंसए' इम प्राकृत शब्द की संस्कृत छाया 'मांसकम्' होती है | स्वार्थ में 'क' प्रत्यय हुआ है। मांस का अर्थ है रस का पिण्ड अर्थात् रक्त से उत्पन्न होने वालो तीसरी धातु । जैसे प्राणी के शरीर में रस का पिण्ड होता है उसी प्रकार फल वगैरह में भी होता है, इसलिए मांस को रक्त पिण्ड रूप कहा है । कहीं-कहीं प्राणी के मांस और फल के गूदे में रंग की भी समानता देखी जाती है, इसलिए मांस शब्द से फल का गूदा अर्थ भी लिया जाता है । प्रज्ञापन सूत्र में कहा भी है- "बेटं मांसकडाहं इयाई हवंति एगजीवस्य ।” अर्थात् एक जीव के वृन्त, मांस सहित गूदा सहित, और कटाई, ये तीन होते हैं, अर्थात् ये तीनों एक जीव रूप हैं । ( पन्नत्रणा बाबू. पद. १ पृ. ४० > इसी प्रकार वाग्भट्ट में ( देखिये सू. स्था. अ. ६. श्लोक १२९-१३१ ) बिजौरे की त्वचा, मांस और केसर का पृथक-पृथक उपयोग देखा जाने से उनके गुण भी पृथक्-पृथक् कहे हैं
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मातुलिंग की छाल तिक्त, कडुवी, स्निग्ध, तथा वातनाशक है । मातुलुंग का गूदा बृंहण, मधुर, वातपित्तनाशक एवं गुरु है । उसकी केशर लघु है, श्वास खांसी, से हुवा रोगों
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