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________________ रेवती-दान-समालोचना करते । अतएव यहाँ कोई शंका कर सकता है कि टीकाकार ने उस पक्ष का क्यों खण्डन नहीं किया ? 'श्रयमाणमेवार्थ केचिन्मन्यन्ते' ( कोई कोई इस सुने जाने वाले अर्थ को मानते हैं ) इस वाक्य से किसी का मत मांसार्थक है, ऐसा क्यों कहा? यहाँ प्रश्नकर्ता का आशय यह है कि यदि इस वाक्य से टीकाकार ने पूर्व पक्ष किया है तो अपनी ओर से उसका खण्डन क्यों नहीं किया ? ॥ २८ ॥ दूसरा पक्षः दुसरे लोग कहते हैं कि इस ( वनस्पति अर्थ ) पक्ष का उन्होंने मंडन क्यों नहीं किया ? योग्य-अयोग्य का विचार करके अभिप्राय क्यों नहीं प्रदर्शित किया ? ॥२९ ॥ __ कपोत अर्थात् कबूतर पक्षी, और उसके रंग के समान जिस फल का रंग हो वह कपोत फल अर्थात् कोला। क्योंकि कोला में वनस्पति कायकि जीव होता है अतः उसे कपोत-शरीर कहते हैं। इस प्रकार टीका. कार ने नो दूसरा पक्ष लिखा है वह भो दूसरों का मत बताया है-अपना नहीं। यदि टीकाकार को वह अर्थ स्वीकार था तो, साधक-बाधक प्रमाणों के द्वारा, योग्य अयोग्य का विचार करके मांसार्थ का खण्डन करने में अपना मत क्यों नहीं प्रगट किया है ? तात्पर्य यह है कि टीकाकार ने दोनों अर्थ दिये हैं मगर वे दूसरों के मत के अनुसार दिये हैं। अपनी ओर से कुछ भी अर्थ नहीं लिखा। इसका क्या कारण है ? ॥ २९ ॥ निबंध-लेखक का समाधान: इस विषय में मैं कहता हूँ-यद्यपि टोकाकार ने स्पष्ट शब्दों में कुछ नहीं कहा है तो भी सूक्ष्म निरीक्षण करने से उनका श्राशय मालूम हो जाता है ।। ३० ॥ इस विषय में मैं कुछ कहता हूँ-यद्यपि टीकाकार ने पूर्व पक्ष या उत्तर पक्ष के विषय में अपने शब्दों में कुछ नहीं कहा है, तथापि पूर्वापर का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035225
Book TitleRevati Dan Samalochna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal
Publication Year1935
Total Pages112
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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