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रेवती-दान-समालोचना
इस तीव्र दुःख के बाद क्या हुआ ? आश्वासन देने वाला वहाँ कोई नहीं था। अतएव उनका दुःख प्रतिक्षण बढ़ता-बढ़ता अन्त में आँसुओं के रूप में बाहर निकलने लगा; यही बताते हैं
वह अनगार मालुयाकच्छ वन में जाकर आर्तस्वर से रोने लगे कि हाय ! हाय !! स्वामी (महावीर ) की मृत्यु होने पर धर्म की हीनता होगी ।। ६ ।। __ यद्यपि ज़ोर-जोर से चिल्लाकर भार्च स्वर से रोना आर्तध्यान के अन्तर्गत है तथापि सिंह अनगार का यह रोना आर्तध्यान नहीं है क्योंकि एक तो वह धर्म सम्बन्धी शुभ राग से उत्पन्न हुआ और दूसरे उसमे गुरुभक्ति की भावना थी। उन्हें तो केवल यही चिन्ता थी कि यदि छह मास के मोतर महावीर स्वामी का अवसान हो गया तो अन्य मतावलम्बी क्या कहेंगे ! निस्सन्देह वे वीर-शासनं को मलिन करेंगे और कहेंगे कि देखो महावीर तो छप्रस्थ अवस्था में ही मर गए। इस प्रकार भविष्य कालीन धर्म की हानि के विचार से ही वे रोये थे। कहा भी है-जिस ओर मालुयाकन्छ था, उसी ओर वे आये और मालुयाकच्छ में प्रविष्ट हुए । उसमें प्रविष्ट होकर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगे ॥ ६ ॥
शिष्य को आश्वासन भगवान वीर ने सिंह अनगार को शीघ्र बुलाने के लिए मुनियों को भेजा। उद्यान से आये हुए सिंह अनगार को वीर ने इस प्रकार आश्वासन दिया ॥७॥
"कौन शिष्य ? गुरुभक्त होय जो, कौन गुरु ? हितदेशक हो।" यह मणिरत्नमाला में लिखा हुआ गुरु शिष्य का स्वरूप सत्य ही है। अस्तु । शिष्य का रोदन भगवान् महावीर ने जाना। उन्होंने तत्काल श्रमणों
को बुलाकर कहा-"कोमल स्वभाव वाला मेरा शिष्य सिंह अनगार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com