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________________ २१० पवरकुंदुरुक्कतुरुकधूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामं करेंति । अप्पेगइया देवा मूरियामं विमाणं सुगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेंति। अप्पेगइया देवा हिरण्णवास वासंति सुवण्णवासं वासंति रययवासं वासंति वइरवासं० पुप्फवासं० फलवासं० मल्लवासं० गंधवासं० चुण्णवासं० आभरणवासं वासंति । अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाएंति, एवं सुवण्ण विहिं भाएंति रयण विहिं पुप्फविहिं फलविहिं मल्लविहिं चुण्णविहिं वत्थविहिं गंधविहिं० । तत्थ अप्पेगइया देवा आभरणविहिं भाएंति अप्पेगइया चउविहं वाइयं वाइंति-ततं विततं घणं झुसिरं । अप्पेगइया देवा चउन्विहं गेयं गायंति, तंजहा-उक्खित्तायं पायत्तायं मंदायं रोइयावसाणं । अप्पेगइया देवा दुयं नट्टविहिं उवदसिंति अप्पेगइया विलंबियपट्टविहिं उवदंति अप्पेगइया देवा दुयविलंबियं णट्टविहिं उवदंसेति । एवं अप्पेगइया अंचियं नट्टविहिं उवदंसेंति अप्पेगइया देवा आरभडं भसोलं आरभडभसोलं उप्पयनिचयपमत्तं संकुचियपसारियं रियारियं भंतसंभंतणाम दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति । अप्पेगइया देवा चउन्विहं अभिणयं अभिणयंति, तंजहा-दिलैंतियं पाडंतियं सामंतोवणिवाइयं लोगअंतोमज्झावसाणियं । अप्पेगइया देवा बुक्कारेंति अप्पेगइया देवा पी0ति अप्पेगइया वासेंति अप्पेगइया हक्कारेंति अप्पेगइया विणंति तडवेति । अप्पेगइया वग्गंति अफोडंति । अप्पेगइया अप्फोडंति वग्गंति अप्पे० तिवई छिंदंति । अप्पेगइया हयहेसियं करेंति अप्पेगइया हथिगुलगुलाइयं करेंति अप्पेगइया रहघणघणाइयं करेंति अप्पेगइया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035223
Book TitleRajprashniya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN V Vaidya
PublisherKhadayata Book Depot
Publication Year
Total Pages286
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size17 MB
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