________________
( १०० ) सावध ( पाप ) योग तीन बेर करेमि भंते सामायिक दंडक नहीं उश्चर के नहीं त्यागने यह मंतव्य उचित है या अनुचित ?
२० [प्रश्न ] श्रावक को दो घड़ी की सामायिक में एक बार सामायिक दंडक उच्चराणा मानते हो तीन बेर नहीं तो श्रावक अपने घर में सामायिक दंडक उच्चर के गुरु के पास आकर फिर करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चर के दो घड़ी के दैवलिक प्रतिक्रमण में तीन वेर फिर उसी करेमि भंते सामायिक दंडक का उच्चारण करता है और दो घंटे का पाक्षिक प्रतिक्रमण में ६ बेर उसी करेमि भंते सामायिक दंडक का उच्चारण करता है एवं एक या दो पहर सुने की संथारा पौरसी में पौषधव्रतधारी श्रावक तीन बेर उसी करेमि भंते सामायिक दंडक को उच्चरते हैं, इसी तरह दो घड़ी का नवमा सामायिक व्रत में भी तीन बेर उसी करेमि भंते सामायिक दंडक को श्रावक उच्चरते हैं तो इसमें कोन सी दोषापत्ति मानते हो?
२१ [ प्रश्न ] यदि कहा जाय कि सामायिक सूत्र में करेमि भंते सामाइयं यह द्वितीया का एक वचन है, वास्ते साधु या श्रावक को एक बेर करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चरणा उचित है, तीन बेर नहीं तो श्रीअोघनियुक्ति में सामाइयं उभयकालपडिलेहा इस नियुक्ति पाठ में भी सामाइयं यह सामान्यपने से जाति में एक वचन है तथापि टीकाकार श्रीद्रोणाचार्य महाराज ने उसकी टीका में खुलासा लिखा है कि-सामायिकं वारत्रयमाकुष्य स्वपीति और श्रीव्यवहारभाप्य श्रीनिशीथचूर्णि-समाचारी श्रादि शास्त्रकार महाराजों ने सर्व विरति देश विरति सामायिक वा उच्चरने के लिये लिखा है कि-सामाइयं तिगुणं-सामाइ तिखुतो कट्टइसामाइयदंडगो नवकारो य वारतिगं भणिजइ
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com