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४ [प्रश्न ] पंचाशक पाठ के अनुसार श्रीवीरतीर्थकर के पाँच कल्याणक मानते हैं तो पंचाशक टीका में पोषधः पर्वदिना ऽनुष्ठानम् ] इस वाक्य से पोषध व्रत पर्व दिन का अनुष्ठान लिखा है और आप पोषध व्रत को अपर्व दिनों का भी अनुष्ठान मानते हैं, सो पंचाशक टीका के उक्त वाक्य से संमत है या नहीं?
५ [प्रश्न] पंचाशक मूल तथा टीका में यह नहीं लिखा है कि देवानंदा की कुक्षि से गर्भापहार द्वारा त्रिशलारानी की कुक्षि में श्रीवीर प्रभु को स्थापन किया सो अत्यंत निंदनीयरूप तथा अकल्याणकरूप है, तथापि आपके धर्मसागरजी इत्यादि ने अपनी रची हुई कल्पसूत्र की टीकाओं में उक्त प्रकार की नवीन उत्सूत्र प्ररूपणा लिखी है और आप लोग भी उसी प्ररूपणा को एकांत आग्रह से मानते हैं और उक्त प्ररूपणा करते हैं, सो पंचाशक पाठ से विरुद्ध है या नहीं?
६ [प्रश्न] कल्पसूत्र में श्रीनेमनाथ स्वामी के १८ गणधर लिखे हैं परंतु श्रीहरिभद्रसूरिजी ने किसी अपेक्षा से आवश्यक टीका में ११ गणधर लिखे हैं उसी प्रकार पंचाशक में भी श्रीवीर प्रभु के ५ कल्याणक ४८० तीर्थकरों के पाँच पाँच कल्याणकों को बतलाने की अपेक्षा से लिखे हैं । जैसे श्रावती चौवीसी में श्रीपद्मनाभ तीर्थकर के गर्भ जन्म आदि पाँच कल्याणक श्रीवीर प्रभु के दृष्टांत द्वारा बताने पर देवानंदा ब्राह्मणी के कुक्षि से गर्भापहार के द्वारा त्रिशलारानी की कुक्षि में श्रीवीर प्रभु का पाना अथवा नीचकर्मविपाकरूप नरक से श्रीपद्मनाम तीर्थकर महाराज का अपनी माता की कुक्षि में पाना अत्यंत निंदनीयरूप अकल्याणकरूप मानना विरुद्ध है, किंतु गर्भापहारद्वारा श्रीवीर प्रभु का त्रिशला माता की कुत्ति में पाना इसको प्रसंशनीयरूप एवं कल्याणकरूप ही मानना उचित है तो मार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com