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हो तो दूसरी तिथि पूर्णिमा में विद्वाणी हुई सूर्योदय करके युक्त पूर्वतिथि अल्प चतुर्दशी भी मान्य होती है । और ( न हु पुव्व तिहि विद्धा) याने पूर्वतिथि से विद्वाणी हुई सूर्योदयरहित पर तिथि प्रमाण नहीं की जाती है । जैसे कि सूर्योदय से दो घड़ी त्रयोदशी है उसके अनंतर चतुर्दशी होवे तो सूर्योदयरहित वह चतुदेशी प्रमाण नहीं की जायगी, किंतु सूर्योदय करके युक्त पूर्वतिथि दो घड़ी की अल्प त्रयोदशी ही मानी जायगी । तपगच्छनायक श्रीरत्नशेखरसूरिजी ने भी श्राद्धविधि ग्रंथ में लिखा है कि
पारासरस्मृत्यादावपि आदित्योदयवेलायां, या स्तोकापि तिथिर्भवेत्, सा संपूर्णेति मंतव्या प्रभूता नोदयं विना || १ ||
अर्थ – पारासरस्मृति आदि ग्रंथों में भी कहा है कि सूर्योदय के समय में थोड़ीसी भी जो तिथि हो तो वही तिथि संपूर्ण मान लेनी चाहिये और सूर्योदय के वक्त जो तिथि न हो और पश्चात् बहुत हो तो सूर्योदयरहित वह तिथि नहीं मानी जाती है । श्रीदशाश्रुतस्कंध भाष्यकार महाराज ने भी लिखा है कि
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चाउम्मासिय वरिसे, पख्खिय पंचमीसु नायव्वा । ताओ तिहियो ज्जासि, उदेइ सूरो न अन्नाओ || १ ||
अर्थ – चातुर्मासिक, सांवत्सरिक, पाक्षिक और पंचमी, अष्टमी इत्यादि पर्वदिनों में वही तिथियाँ मानने योग्य जाननी जिन चातुर्मासिक आदि पर्वतिथियों में सूर्य उदय हुआ हो और सूर्योदयरहित अन्यतिथियाँ मान्य नहीं हैं । याने सूर्योदय के समय में चातुर्मासिक, सांवत्सरिक, पाक्षिक आदि पर्वतिथियाँ हों उन्हीं तिथियों में चातुर्मासिक, सांवत्सरिक, पाक्षिकादि प्रतिक्रमण पौषध आदि धर्मकृत्य करने चाहियें, यह शास्त्रकारों की आज्ञा है । अतएव
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