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क्योंकि इस प्रकार श्रीपरमात्मा के अवतार की निंदा मिथ्यात्वि लोग भी नहीं करते हैं वास्ते उपर्युक्त २० प्रश्नों के अलग अलग २० उत्तर तपगच्छ के श्रीआनंदसागर जी प्रकाशित करें इत्यलंविस्तरेण ।
* दूसरा प्रश्न *
तपगच्छ के श्रीआनंदसागरजी ने स्वप्रतिज्ञापत्र में लिखा है कि - " अपर्वस्वपि पोषधः प्रतिषेध्यो न वा ?" अर्थात् शास्त्रकार महाराजों ने प्रपर्व दिनों में पोषध व्रत प्रतिषेध योग्य लिखा है या नहीं ?
[उत्तर] दो पूनम या दो अमावस होने पर तपगच्छवाले सूर्योदययुक्त चतुर्दशी पर्वतिथि को झूठी कल्पना से दूसरी तेरस मानकर सावद्यकार्य नहीं वर्जन करके विशेष लाभ के लिये पापकृत्यों से उस १४ पर्वतिथि को विराधते हैं और उस १४ पर्वतिथि में प्रविधि समझ कर पौषधोपवास-सहित पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमण आदि धर्मकृत्य करने नहीं मान कर दूसरे गच्छवालों को प्रतिषेध (निषेध) करते हैं, इसी तरह कल्याणक आदि पर्वतिथियों की वृद्धि होने पर सूर्योदय युक्त ६० घड़ी की पहिली पर्वतिथियों में पौषध उपवास आदि धर्मकृत्य करने तपगच्छवाले निषेधते हैं और अनेक प्रकार के पापकृत्य करते हैं, सो तो आनंदसागरजी को मालूम नहीं हैं और शास्त्रसंमत खरतरगच्छवालों से शास्त्रार्थ करने को तैयार हुए हैं, अस्तु श्रावक की यथाशक्ति के अनुसार दो चतुर्दशी दो अष्टमी एक अमावास्या एक पूर्णिमा, इन ६ पर्वतिथियों में
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