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हुई देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि से गर्भापहार द्वारा त्रिशलामाता की कुक्षि में गर्भपने से श्रीवीर तीर्थकर का आना हुआ वह ट्टाँ कल्याणकरूप है इत्यादि समुचित लिखा है। क्योंकि उपर्युक्त कल्पसूत्रादि अनेक पाठों के अनुसार श्री ऋषभादि तीर्थकरों ने तथा श्रीइन्द्र महाराज और श्रीभद्रबाहु स्वामी आदि अनेक प्राचार्यों ने कल्याणकरूप कथन किया है, उसको विषमवादी वा निंदातत्पर तपगच्छ के धर्मसागरजी आदि उपाध्यायों ने कल्पकिरणावली आदि टीकाओं में सिद्धांत - विरुद्ध नीचगोत्रविपाकरूप, अत्यंत निंदनीयरूप, अकल्याणकरूप मानने की जो नवीन प्ररूपणा की है वह सर्व प्रकार से अनुचित है । इसलिये उक्त उपाध्याय महाराजों की यह उक्त नवीन प्ररूपणा मूलकल्प सूत्रादि किसी गम से संमत हो तो वह पाठ आप बतलाइये ?
१८ [प्रश्न ] नरक से निकल कर श्रीतीर्थकर महाराज अपनी माता की कुक्षि में आते हैं उसी को कल्याणकरूप माना जाता है तो हरणागमेषी देव के द्वारा देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि से गर्भापहार से निकलकर श्रीवीर तीर्थकर त्रिशला माता की कुक्षि में आये इसमें क्या प्रयुक्त हुआ कि उसको अत्यंत निंदनीयरूप, अकल्याणकरूप आपके उक्त उपाध्यायजी ने मान लिया है और आप भी वैसा ही मानते हैं ?
१६ [ प्रश्न ] यदि तपगच्छ वाले कहें कि देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि से श्रीवीर गर्भापहार आश्चर्यरूप है इसलिये उसको नीच गोत्रविपाक रूप, अत्यंत निंदनीयरूप, अकल्याणक रूप हमारे उक्त उपाध्याय महाराजों ने मानकर कल्याणकरूप नहीं माना है और हम भी उनके मंतव्यानुसार वैसाही मानते हैं तो हम मैत्री भावना करके तपगच्छ वालों से यह पूछते हैं कि नरक से निकलकर श्रीतीर्थकर महाराज अपनी माता की कुक्षि
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