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मानना और श्रीत्रिशलारानी की कुक्षि में गर्भपने से आये उसको अकल्याणकरूप अत्यंत निंदनीयरूप मानना, यह प्राप लोगों का प्रत्यक्ष अन्याय है या नहीं ?
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१६ [ प्रश्न ] और भी सुनिये । १६ वें तीर्थकर प्रभावती माता की कुक्षि से आश्चर्यरूप स्त्री के स्वरूप से मल्लीकुमारी हुई उसको कल्याणकरूप मानते हैं और २४ वें तीर्थकर गर्भापहार के द्वारा त्रिशलामाता की कुक्षि में गर्भपने से आये उसको अत्यंत निंदनीयरूप अकल्याणकरूप आपके उक्त उपाध्याय जी ने लिखा है सो उपर्युक्त कल्पसूत्र के रचयिता श्रीश्रुतकेवली चतुर्दशपूर्वघर श्रीभद्रबाहु स्वामी के वचन से अथवा अवधी ज्ञानी श्रीइन्द्र महाराज के उक्त वचन से विरुद्ध है या नहीं ?
१७ [प्रश्न ] यदि तपगच्छ 'वाले कहें कि खरतरगच्छ के श्रीजिनवल्लभसूरिजी ने गर्भापहार द्वारा श्रीवीर तीर्थंकर त्रिशलामाता की कुक्षि में आये उसको कल्याणकरूप कथन किया है तो खरतरगच्छ वाले अनेक आचार्यों के रचित ग्रन्थों के प्रमाणों से बता रहे हैं कि जैसा देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भपने से भगवान् का आना हुआ यह आश्चर्यरूप कल्याकरूप है वैसाही माता त्रिशलारानी की कुक्षि में गर्भपने से श्री वीर तीर्थकर का आना हुआ वह भी आश्चर्य्यरूप कल्याणक रूप है इत्यादि सत्य स्वरूप से श्रीनवांगसूत्र टीकाकार श्रीप्रभयदेव सूरिजी के प्रधान शिष्य श्रीजिनवल्लभ सूरिजी महाराज ने विषमवादी अंज्ञानी चैत्यवासियों के सन्मुख जो कथन किया है वह श्रागमसंमत है प्रतएव उक्त महाराज के नाम से गणधर सार्द्धशतक बृहट्टीकाकार महाराज ने [ विधिः श्रागमोक्तः प कल्याणक रूपश्च ] इत्यादि पाठ से विधि जो आमम में कहीं
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