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प्रश्नोत्तररत्नमाळा
परिचय से विषयवासना जागृत होती है और परिणाम में व्रतभंग, लोकारवाद और नोच गति सब विपाक भोगने पड़ते हैं।
६९-चपला जिम चन्चल नर आय-खिरत पान जब लागे वाय, छिल्लर अंजलि जल जिम छीजे, इण विध जाणी ममता कहा कीजे ॥ चपला जिम चंचल धन धाम-चरला अर्थात विजलो जो क्षण भर में अदृश्य हो जाती है, क्योंकि उसका स्वभाव चपल है। इसी प्रकार मनुष्य आयुष्य और लक्ष्मी भी चपल है अर्थात् आयुष्य और लक्ष्मी को नष्ट होते देर नहीं लगती। जिस प्रकार हवा के झोके से वृक्ष के पत्ते खिर जाते हैं और अंजुलीस्थित अल्प जल शिघ्र टपक जाता है, उसीप्रकार आयुष्य और लक्ष्मी भी अल्प स्थायी है इनका अन्त आते देर नहीं लगती । इस प्रकार स्वबुद्धि से विचार करने पर भी संसार को झूठो माया में कैसे फंस जाते हैं ? पर वस्तु में झूठी ममता करने से हो जीव दुःखी होता है और अपना सच्चा स्वरूप तथा सञ्चा कर्त्तव्य भूल कर सच्चे सुख से वंचित रहता है । इतनी ममता यदि अपने ज्ञान, दर्शन और चारित्रादिक आत्मगुण में रखी जाय आर निर्मल स्फटिक रत्न सदृश उज्जवल आत्मस्वरूप में ही अहंता रखी जाय तो अला समय में हो समस्त दुःख का अन्त हो सकता हैं। अज्ञानी जीव परवस्तु, देह, स्त्री, लक्ष्मी प्रमुख में ही अहिंसा आर ममता रखते हैं, जबकि ज्ञानी विवेकी जन " शुद्ध प्रात्मद्रव्य ही, शुद्ध ज्ञान गुण हो मेरे है " ऐसी सच्ची अहंता आर ममता रखते है, अतः वे हंस के सदग दुःख मात्र को छोड़ कर सुख मात्र का ही स्वाद. ले सकते हैं और यह ही परम कर्तव्य है।
७०.. अचल एक जग मे प्रभु नाम-इस नाशवान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com