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________________ : : ३५ : ः प्रश्नोत्तररत्नमाळा यित रहते हैं। ऐसे जिन अरिहंत तीर्थकर भगवान सच्चे देव हैं, अतः यह निश्चय है कि वे ही देवाधिदेव हैं । इस प्रकार स्वबुद्धि से तत्त्वनिश्चय कर कल्याण अर्थ जनों को उक्त जिनेश्वर भगवान का हो आत्मा की सम्पूर्ण विभूति का साक्षात्कार करने निमित्त दृढ़पन ( निश्चिलपन ) से अवलम्बन करना योग्य है । जिन्होने सम्पूर्ण स्वरूप साक्षात्कार कर लिया है ऐसे जिनेश्वर भगवान को अनन्य भाव से अवलम्बन करनेवाला भी आत्मसाक्षात्कार का अनुभव कर सकता है इसमें कोई आश्रय नहीं है । ४३. ब्राह्मण ते जे ब्रह्म पिछाने - ब्रह्म जो परमात्मा उस का स्वरूप अच्छी प्रकार से समझे वह ब्राह्मग; अथवा ब्रह्म जो ज्ञान ज्योति, उसी में स्नान करे, ज्ञान में निमन रहे, अज्ञानाचरण न करे वह ब्राह्मग, अथवा ब्रह्म वह जो ब्रह्मचर्य - शील, संतोषादिक सद् गुणों का सदा सेवन करे वह ब्राह्मण । उपरोक्त शब्द परमार्थ से स्पष्ट है कि सम्यग् ज्ञान और सम्यग् आचरण इन दोनों के साथ साथ सेवन से हो ब्राह्मण होता है । जिसमें सम्यग ज्ञान भो नहीं और सम्यग आचरण भो नहीं वह सच्चा ब्राह्मण नहीं । इस उत्तम प्राशय से अन्यत्र कहा है कि सर्व जाति में ब्राह्मणन भी है तथा सर्व जाति में चाण्डालपन भी है और चान्डालों में भो ब्राह्मण है यह वचन उपरोक्त बात की पुष्टि करता है । अर्थात् निर्मल बोध और निर्मल-निर्देभ, आचरण से हो ब्राह्मण हो सकता है । "" ४४. क्षत्री कर्म रिपु वश आणे – राग, द्वेष और मोहादिक कर्म शत्रुओं का निग्रह कर उनको अपने वश में करनेवाला हो सच्चा क्षत्री है। केवल क्षत्री कुल में जन्म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035213
Book TitlePrashnottarmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherVardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages194
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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