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________________ : : २५ : : प्रश्नोत्तरगतमाळा छती शक्ति गोपवे ते चोर. शिवसाधक ते साध किशोर । अति दुर्जय मनकी गति जोय, अधिक कपट नारी में होय ॥१६॥ २९. परभव साधक चतुर कहावे-बालक को स्तनपान की सहज वासना परभव की सिद्धि प्राप्त कराती है। उस और उसके सदृश अनेक पुरावा से परभव की प्रतीति कर के इस क्षणिक देह को छोड़ने के पश्चात् जो परभव में खुद को अमुक प्रयाण करना है उसके लिये पहिले से ही शुभ साधन कर रखने के लिये तैयार रहे उसी को सच्चा चतुर समझना चाहिये, क्योंकि वह अपनी चतुराई का सदुपयोग अपने हितसाधन में करता है । अपितु कितने ही मुग्धजन तो लोकरंजन करने के लिये ही स्वचतुराई बतलाते हैं किन्तु वह उसका सदुपयोग न होकर दुरुपयोग है। ३०. मूरख जे ते बन्ध बढ़ावे-मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग, दुःप्रणिधान के राग-द्वेषादिक दोष जिनके कारण जीव विविध कर्मबन्धन कर संमारचक्र में फिरता रहता है उन आत्मगुणों के विरोधी दोषों को सेवन करनेवाला और आत्मगुणों को नाश करनेवाला आत्मद्रोही मूर्ख है। बुद्धि प्राप्त कर तत्व का विचार करना चाहिये। इस महावाक्य के गढार्थ को न समझ कर इसका विरुद्ध उपयोग करनेवाला दुर्बुद्धि विवेकहीन मूर्ख ही कहलाता है। दुर्लभ मानव देह को प्राप्त कर वीतरागप्रणीत व्रत-नियम का पालन करना इस महावाक्य की उपेक्षा कर तुच्छ एवं क्षणिक ऐसे विषयसुखों में ही मग्न होजाना बड़ी मूर्खता है । लक्ष्मी प्राप्त कर सुपात्रदान द्वारा उसका लाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035213
Book TitlePrashnottarmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherVardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages194
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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