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प्रश्नोत्तर रत्नमाळा
जाता है | क्षमावंत विवेकी जीव हो अहिंसा धर्म का यथार्थ पालन कर सकता है ।
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१७. आश्रम कर्म आगमन धारे—जिससे नये नये कर्म आकर आत्मा से मिले अर्थात् आत्मा के साथ शुभाशुभ कर्म का मिश्रण होने का जो कारण है उसे शास्त्र में
श्रव कहते हैं । इन्द्रियों के विषयों का सेवन, कोधादिक कषाय के वश होना, अविरतपन से रहना, मन, वचन और काया के विचित्र व्यापार करना, और नवतत्र प्रकरण मं कथित पचीश प्रकार की क्रिया का सेवन करना इनसे शुभाशुभ कर्मों का आवागमन होता है ।
१८. संवर तास विरोध विचारे - उपरोक्त आश्रव को अटकाने अर्थात् ऊपर बतलाई हुई विविध करणी द्वारा आत्मा के साथ मिश्रण होनेवाले शुभाशुभ कर्म को रोकना सम्बर कहलाता है । समिति ( सम्यक् प्रवर्तन ), गुप्ति ( मन, वचन और काया का गोपन ), परिसह ( अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्गादिक ) और क्षमादिक दस महाशिक्षा का पालन करना, द्वादश भावना और सामायिकादिक चारित्रद्वारा पूर्वोक आश्रव टाले जा सकते हैं ।
१९. निर्मल हंस अंश जहां होय, निर्जरा द्वादशविध तप जोय - जैसे हंस क्षीर-नीर को पृथक् पृथक् कर सकता है, उसी प्रकार जिसके घट में निर्मल ज्ञान-वैराग्य प्रकट हुआ है वह बाह्य और अभ्यंतर तप द्वारा निर्जरा - पूर्वभव के संचित कर्म का क्षय कर सकता है । खानपान बिना निराहार रहना, आहार में कमी करना, नियमित रूप से
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