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________________ प्रश्नोत्तररत्नमाळा साथ साथ शास्त्राभ्यास में उनकी समता करनेवाला कोई प्रबल पुरुष भाग्य से ही उनके बाद हुआ होगा ऐसा जान पड़ता है । आधुनिक होने पर भी उनकी अन्यशैलो ऐसी अर्थबोधक एवं आकर्षक है कि आनन्दघनजी की बहोतरी के साथ साथ अनेक अध्यात्मरसिक जन चिदानन्द बहोतरी को मुक्त कंठ से गाते हैं । विशेषतया चिदानन्दजी को कृति में शब्दरचना इतनी सादी है कि उनका गाना बालजीवों के लिये भी बहुत सुलभ है। उन सब कृतियो में से 'प्रश्नोत्तररत्नमाला' भी एक है। मूल ग्रन्थ छोटा होने पर भी उसमें अर्थगौरव इतना बड़ा है कि उसके एक एक प्रश्न के उत्तर के लिये समर्थ विद्वान एक एक स्वतंत्र ग्रन्थ की योजना कर सकता है । मेरे जैसे मन्दमति से ऐसा करना तो अशक्य है, परन्तु उसका सहज स्पष्टीकरण करने के लिये यथामति उद्यम किया है। उसमें से सार मात्र ग्रहण कर के भव्यजन स्वपरहित में वृद्धि करें, ये ही महाकांक्षा और ये ही कत्तव्यरूप समझ कर प्रस्तुत प्रस्तावना समाप्त करता है । इस ग्रंथपर श्रीमान् कपूरविजयजी महाराज माहेबने गुजराती भाषा में विवेचन लीखा था और वह श्रेयस्कर मंडल की तरफ से प गया है उस पर सें मेने हिन्दी भाषा में अनुयाद लीखा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035213
Book TitlePrashnottarmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherVardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1940
Total Pages194
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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