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प्रश्नोत्तर एकसोचाळीसमो
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जैनी श्रावक कीधा, इरणइ अनुक्रमइ श्रीखरतर पक्षे मूविर अनेक मातिशय थया ” इत्यादि जोज्यो, वली -
"व्याख्याताऽभयदेवसूरिरमलप्रज्ञो नवांग्याः पुनः, प्रौढिं श्रीजिनवल्लभो गुरुरधाद् ज्ञानादिलक्ष्ग्या पुनः । भव्यानां जिनदत्तसूरिग्ददाद्दीक्षां सहस्रस्य तु, ग्रन्थान् श्रीतिलकश्चकार विविधांश्चन्द्रप्रभाचार्यवत् || १ || " इति श्रीतपागच्छीय श्रीमुनिसुन्दरसूरिकृत त्रिदशतरंगिणी ग्रन्थे श्री पूर्वाचार्यवर्णनाधिकारे २०/२१ तरंगे | तथा श्री वांगी - वृत्तिकारक श्री अभयदेवसूरिना शिष्य श्रीजिनवल्लभसूरिना कीधा ए उढसइया कर्मग्रन्थ, तेहनी वृत्ति श्रीचित्रावाल गच्छीय श्रीधनेवरसूरिनी कीधी, श्रीदउढसइया कर्मग्रन्थनी टीकाना पाठनउ वार्त्तिक करी लिख्यउ छइ । तथा दीवालीकल्प ग्रन्थमांहि ( जिन सुन्दरसूरिए) लिख्यऊ छइ " जे वर्द्धमानस्वामीयइ इम काउ छइ - श्रीखरतरगच्छ १२०४ वर्षर्इ थास्यइ " ए भावार्थ छ, त छइ, खरतर गच्छनइ तुम्हे धर्मसागररा किया बाहीरसूंदा प्रन्थांनी साखि लेई कांइ दूषवउ छउ ? विचारी जोज्यो, घरणउ स्यु लिखीयइ ?
वली तत्त्वतरंगिणीनी वृत्तिमांहि दृष्टिरागइ करी भूलइ थकइ तपइ धर्मसागर उपाध्यायइ बिहुं ठामे जूजूमा इम लिख्या छइ - " श्री अभयदेवसूरिमुखात् परमानन्दनाम्ना विनेयेन खरतर सामाचायी पौषधाधिकारे प्रथमपत्रे " एतलइ श्रीश्रभयदेवसूरिन इ चारइ परमानन्द नाम शिष्यनइ खरतर नाम कह्या छइ, विचारी जोज्यो, ए तपइ धर्मसागर उपाध्यायनइ एतला भोलपणा थया,
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