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प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक
रं परमाथइ तेह सामाचारी ग्रन्थना करणहार खरतर न हवई, वरणाइ गच्छि गच्छ अभयदेवसूरि थया छइ, परं ते भइयइ बिडालनी पर दही दीठउ पुरिण लगुडना प्रहार न दीठा, सामाचारी खग्तरांनी ए जाणी अभयदेवसूरिनइ खरतरपण उ अरणगमतउ व्यउ न जाण्यउ, वली
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स्वस्ति श्री सं० १६१७ मिते कार्त्तिक सुदि ७ दिने शुक्रबारे श्रीपाटनगरे श्रीखरतरगच्छनायक वादिकंदकुद्दाल भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरि चौमासीकीधी । तिवारs ऋषिमती धर्मसागर कूडी चरचा मांडी, जउ अभयदेवसूरि नवांगीवृत्तिकर्ता श्रीथंभणा पार्श्वनाथ प्रगटकर्त्ता, ते खरतरगच्छे न हुआ । एहवी बात सांभली तिवारै श्रीजिनचन्द्रसूरि समस्त दर्शन एकठा कीधा, पर्छ समस्त दर्शननइ पूछ्यो जे श्री अभयदेवसूरि नवांगी वृत्तिकर्त्ता थंभरणा पार्श्वनाथ प्रकटकत्ती किस गच्छर हुआ ? तिवारै समस्त दर्शन मिली अ नै घरणा ग्रन्थ जोया । पछे इम कह्यो - जे श्री अभयदेवसूरि खरतरगच्छे हुआ मही सत्यं समस्त दर्शन घणा ग्रन्थ जोइनइ सही कीधी, सही वार १०८ । अत्र साखि -
भट्टारक श्रीक (घ) सुन्दरसूरि मतं १ सिद्धांतीया वडगच्छ । श्रीथिरचन्द्रसूरि मतं २, जावडीया गच्छे श्रीहर्षविनय मतं ३, निगमीया तपागच्छे श्री भ० कल्याणरत्नसूग्मितं ४, बृहत्तपागच्छे श्रीसिद्धसूरितं ५, बिवंदगीक बारेजिया खडखडता तपागच्छे श्रीपरमानंदसूर मतं ६, सिद्धांतीया वडगच्छा श्रीमहीसागरसूरि मतं ७, काछेला पूनमीयागच्छे उदयरत्नसूरि मतं,
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