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________________ ४०६ प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक श्रीखरतरगच्छ तथा श्रीखरतरगच्छना आचार्य श्रीअभयदेवसूरि श्रीजिनवल्लभसूरि. श्रीजिनदत्तसूरि. श्रीजिनप्रभसूरिना नाम लेड वखाण्या छइ, तद्यथा : "पुरा श्रीपत्तने राज्य, कुर्वाणे भीमभूपती ।। अभूवन भूतले ख्याताः, श्रीजिनेश्वर सूरयः ॥था" “सूरयोऽभय देवाख्या-स्तेषां पट्टे दिदीपिरे । येभ्यः प्रतिष्ठामापन्नो, गच्छः खरतराभिधः ॥२॥" इति तपागच्छीय श्रीसोमसुन्दसूरि शिष्य उपाध्याय श्रीचारित्ररत्नगणि शिष्य प्रज्ञांश सोमधर्म (गणि) विरचित उपदेससत्तारि ग्रन्थे, एतलइ श्रीअभय देवसूरि नवांगीवृत्तिकारक श्रीखरतरगच्छमांहि उद्योतकारी कह्या, एतलइ 'श्रीखरतर बिरुद लाधां पछी श्रीअभय देवसूरि थया' इम तपागच्छना गीतार्थे कह्यु, वली तपागच्छीय हेमहंससूरिकृते कल्पांतराच्ये "खरतगच्छे नवांगी वृत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरि थया, जिये शासनदेवीना वचनथी श्रीथंभणा ग्रामइ श्रीसढीनदीनइ उपकंठि श्रीपाश्वनाथतणी स्तुति 'जयतिहुअण.' बत्तीसी नवीन स्तवना करी श्रीपार्श्वनाथजीनी मूर्ति प्रगट कीधी, श्रीधरणेन्द्र प्रत्यक्ष कीधउ, शरीरनउ कोढ रोग उपशमाव्यउ, नवअंगनी टीका कीधी, तेहना शिष्य श्रीजिनवल्लभसूरि थया, जिये निर्मल चारित्र सुविहित संवेगपक्ष धारण करी अनेक ग्रन्थ तणउ निर्माण कीघउ, तच्छिष्य युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि थया. जिये उज्जैनी-चित्तोडना मंदिरथी विद्यापोथी प्रगट कीधी, देशावरोमां विहार करी राजपूतादिकने प्रतिबोधीने सवा लाख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035209
Book TitlePrashnottar Chatvarinshat Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherPaydhuni Mahavir Jain Mandir Trust Fund
Publication Year1956
Total Pages464
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size24 MB
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