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प्रश्नोत्तरचत्वारिंशत् शतक प्रतिपदादिके कीजइ न कीजईई, पर्वतिथिन र उपवास पर्वतिथिए करिवउ, बीजीए तिथिए उपवास करतां पाल्यउ नथी, ए अर्थ, तत्त्वार्थवृत्तिकारे पौषधोपवासना अर्थ पर्व दिने पोसह नाम व्रतनउ करिवउ कह्यउ, एतलइ वृत्तिकारइ अनइ भाष्यकार इ 'पौषधोपवास' शब्दना अर्थ जूजूआ लिख्या, ठाणांग सूत्रमांहि ४ पासासानइ ठामि सूत्रमांहि तथा वृत्तिमांहि इमइजि पौषधोपवासना जूजूआ अथ कही कही
आसास कह्या, एतलइ व्रतरूप पोमह पर्वतिथिए करिवउ, बीज उ उपवास रूप पोसह पर्वतिथिर करिवउ वीजीए तिथिए उपवास करतां कोई पालतउ नथी. ए तत्वार्थभाष्यकारनउ अभिप्राय छइ, ते ग्रन्थनउ पाठ लिख्यउ नथी ग्रन्थ गौरव भय थकी, यतिनइ 'पक्षियपोसहिए समाहि पत्ताणं' एतलइ यतिनइ पोसह ते उपवास जाणिवा, एकला ब्रह्मचर्यनइ पुणि पोसह कहीयइ 'जया एगस्स बंभवेर पोसहो इयरस्ल पारणों इति श्रीआवश्यकबृहद्वृत्तौ। वली इहां तुम्हे लिख्या जे सुबाहुनइ अपर्वइ अट्ठम पोसह काउ छइ, तत्रार्थे-तिहां अठम पोसह करतां चतुर्दशी प्रमुख पर्वना नाम लिया छइ, तथा नन्दमणियारनइ अधिकारि प्रतिक्रमणचूर्णिमांहि 'पवदियहम्मि कम्मि, अठमभत्तं पगिएहइ नन्दो' एहवइ पाठई नंदमणियारई पुणि शास्त्रनइ न्यायइ पर्वनउइजि पोसह कीधर, तथा नवपदप्रकरणवृत्ति ओसवालांनी कीधी छइ, तिहां नंदनइ ग्रीम वालई चउदसिनी रात्रि तृषा लागी कही छइ, एतलइ पोसह दिन पर्वनउ छइ इम नियम थयउ उदायिन राजानइ अधिकारि उत्तराध्ययननी वृत्तिमांहि पाखीनइ दिनई उदाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com