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प्रश्नात्तर चत्वारिंशत् शतक मतीए श्रीमहावीरना ६ कल्याणक मान्या, आपणां आपणां कोधा ग्रन्थांमांहि ६ कल्याणक लिख्या छइ, जिम श्रीपृथ्वीचन्द्रमूरिकृत कल्पटीकामांहि तथा श्रीकल्पवृत्तिकार श्रीजिनप्रभसूरि थकी पहिल उ श्रीविनयेंदुमूरिकृत कल्पनिरुतमाहे तथा तपागच्छीय श्रीकुल मंडनसूरिकृत श्रीकल्पावचूर्णिमांहि तथा अांचल यानी कीधी कल्पावचूरमांहि "बहुव वनं बहुकल्याणकापेक्षं" पहवे वचने गोपहाग्नइ कल्याणक नाम काउ, तथा आगमीयानइ गच्छि श्रीजयतिलकसूरिकृत सुलमा श्राविकानइ चरित्रमांहे "सिद्धार्थराजाकाज! देवराज!, कल्याणकैः षड्भिरिति स्तुतस्त्वम्।" इति वाक्येन महावीर चरित्र छए कल्याणके करी सहित जाणिवउ, तथा "पुरमथि वद्ध माणं, सुवद्धमाणं सिरी हिं पउराहिं । बहुविहमहलकल्लाण-कारणं वद्धमाणं व ॥१॥” इति श्रीधर्मरत्न प्रकरणवृत्तौ श्रीतपागच्छीय देवेंद्रसूरिकृतायां एकोनविंशतितम श्रावकगुणवर्णनायां बिमल कुमारचरित्रे, एतलइ तपइ देवेन्द्रसरिई ईए वचने श्रीमहावीरने घणा कल्याणक कह्या छइ, जोज्यो । तथा " :श्वसु कल्याणकेषु हस्त उत्तरो यासांताः हस्तोत्तर:उत्तराफाल्गुन्यः” इति तपागच्छीय कुलमंडनसूरिकृत कल्पवृत्ती, इम श्रीमहावीरना छ कल्याणक घणा शास्त्रन्यायइ गच्छांतरी यकृत कल्पनी टीका तथा कल्पनिरुक्तनइ न्यायइ मतीयांनइन्यायइं जाणिवा ।
तथा श्रीसमवायांग सूत्रमांहि १३४ समवायई देवनंदाना गर्भ थकी जे महावीरस्वामी त्रिशलानइ गर्भइ आण्या तेहवइ वचनइ त्रिशलानइ गर्भइ ऊपना ते अट्ठावीसमउ भव गिण्यउ छइ, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com