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________________ प्रश्नोत्तर ओगणचालीसमो १४१ लागइ, तेह भणी गृहस्थनइ चलवलइ अणलीधां ए २ दोष काउ. स्सग्गना न लागे, ११ प्रतिमाअई रजोहरण चोलपट्ट. ए २ श्रावक ल्यइ ते भणी ११ प्रतिमा उरइ ए २ दोष न लागइ, एतले श्रीदेवेन्द्रसूरिकृत श्रावकदिनकृत्य तथा ( तच्छिष्य धर्मकीर्ति कृत) संघाचार ग्रन्थ तथा हेमहंसोपाध्यायकृत षडावश्यक बालाव बोध तथा पं० हर्पभूषणकृत श्रावकविधि(वि)निश्चय, तपागच्छना कीधा ए ग्रन्थ माहोमांहि मिलता जाणिवा, एतलइ वांदणां देतां काउस्सग्गमांहि श्रावक श्राविकाए क्रिया करतां चलवला न लेवा, एवं लहुडी पोसालना तपा श्रावक वडी पोसालना तपा श्रावक क्रिया करतां चलवला घरतीयइ मूकइ, परं यतिनी परि हाथि न ल्यइ, तेहना यति पिण इमजि पूछयां कहइ, एवं मार्गि चालतां सामायिकधर तथा पोसहतानइ पुणि चलवला न लेवा, पूजिवानउ कार्य निसेज्ज स्थानीय पुंछणा उपगरपइ करिवउ शास्त्रन्यायइ दीसइ छइ, चलवला जयणाना अंग छइ, उपासरा पोसहसाला घर तेह करी पूंज्याजि करउ तउई जि श्रीआवश्यकचूर्णिमांहि काउ जे घरे सामायिक लेइ जइ यति पासि जाइ तउ साधु कह्ना रजोहरण मांगइ इम काउ पुणि रजोहरणइ साथिनइ लीयइ पूंजिवानउ न कह्यां स्या माटइ? भांजीयइ भजावियई, चलवलउ ई जयणानउ अंग छइ. पुणि शास्त्रमांहि जिम कडं हुवइ तिम करियइ, इम शास्त्रन्यायइ जाणीयइ छइ, वली जिम गीतार्थ गुरु कहइ ते श्रुतसाखी मानीयइ, परं मतानुराग न कीजइ, छद्मस्थ किहाई चूकिवाल हवइ. पुणि अक्षर दीठां कदाग्रह न कीनइ, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035209
Book TitlePrashnottar Chatvarinshat Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherPaydhuni Mahavir Jain Mandir Trust Fund
Publication Year1956
Total Pages464
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size24 MB
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