________________
१४०
प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक मेलि टाल्या जाणिवा, वली काउसग्गमांहि डाबइ हाथि रजोहरण जिमणइ हाथि मुहपोती ए विधि प्रवाहइ यतिनइ छइ, तथाहि"नाही करयलकुप्पर-उस्सारिय पारियम्मि थुईए ।” (इति) श्रीदेवेन्द्रसूरिकृत श्रावकदिनकृत्य सूत्रे, तस्य वृत्तौ “प्रायः सूत्रे सर्वमप्यनुष्ठानं साधुमुद्दिश्योक्तं, अतस्तद्विशेषमाह-नाभेरधस्ताच्चत्वार्यगुलानि चोलपट्टः, करयलत्ति-दक्षिणेतरपाणिभ्यां मुखवस्त्रिकां रजोहरणच कूपराभ्यां चोलपट्टो धरणीयः ।" इत्यादि पाठ थकी तपागच्छीय देवेन्द्रसूग्इिं नाभि थकी च्यारि आंगुले नीचर चोलवट्टउ १, तथा जिमणइ हाथि मुहपत्ती डावइ हाथि रजोहरण २, तथा कुहणीए बिहुं करी चोलवट्टउ राखिवउ ३, ए त्रिएह वाना काउसग्गमांहि यतिनइ कह्या छइ, ते पुणि श्रीहेमहंसमहोपाध्यायकृत षडावश्यकबालावबोध साथि ए अर्थ मिलतउ जाणिवउ, तथा “खलिण-कविठ्ठदुगं पुण, अगीयसेहाइयाण संभवइ । संभवइ गिहत्थाण वि,कयाइ एंगत्तभावम्मि ॥१॥” इम तपाकृत संघाचार ग्रन्थ (प० ४२०) मांहि कह्या छइ, जे काउसग्गना खलिन कविट्ठ नामइ २ दोष ते अगीतार्थ शिष्यनइ थाइ, गृहस्थनइ पुणि एकत्व भावइ ए २ दोष लागई, इग्यारमी प्रतिमाअंई श्रमणभूत श्रावकनइ पुणि (ए) दोष लागइ, जेह भणी इग्यारमी प्रतिमाअई रजोहरण आदरइ छइ, तेह भणी खलिनना दोष लागइ, वली इग्यारमी प्रतिमाए चोलपट्टउ आदरइ तेहभणी चोलपट्टउ यूकादि भयइ एकतउ (?) पुणि करवाई चोलपट्टा पखइ ठेपाडियइ पहिया एकतउ (१) दोष न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com