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________________ प्रश्नोत्तर ओगण चालीसमो १३९ यिक करतां श्रवकनई औपग्रहिक रजोहर रण - चलवला (होय, ते) साथि पूंजी सामायिक करवुं एवंकारिइ श्रावकनइ रजोहरशुं पूंजीवा भरणी छ, पुणि क्रिया करिया भणी नथी, ते चलवलउ न हवइ तउ पोत'नइ छेहडइ करी पूंजइ, ए विधि श्री आवश्यकवृत्ति - चूर्णिमांहि कही छ, तथा तपागच्छना कीधा श्रीभावश्यकना बालावबोधमांहि इम लिख्या छइ " जे वांदणा देतां श्रावक चलवलइ करी प्रमार्जिवान काम करइ पुणि यति महात्मानी परि मुख आगली धरइ नहीं " इहां आचरणाजि प्रमाण, तथा श्राविकानइ मूलथकी चलवला राखिवा निषेध्या छइ, कोइएक गरढी श्राविका चलवला चउखुणा ल्यइ, इम छइ - जे आपणा हठवाह्यां आपणां मूलगा गुरुना कह्या नथी मानता तेह बीजाना का किम मानिस्यइ ? तथा चोक्तं सोमसुन्दरसूरि शिष्य महोपाध्याय हेमहंसगणिकृते षडावश्यक बालावबोघे - " वांदणा देतउ श्रावक चलवलव करी प्रमार्जिवानउ काम करइ पणि महात्मानी परि मुख आगति न धरई ” इत्यादि । एतलइ पं० हर्ष भूषणकृत श्राद्ध विधि (वि) निश्चय ग्रन्थनइ मेलि पुरिण चडुलीदोष टाल्या - " श्राविकाणां तु पूर्वदर्शिताशठाचीर्णपरम्परागत सामाचारीतो मनोविपर्यासहेतुकवृत्तदण्कोपेतचरपलकग्रहणमपि निषिद्धयते, चरवलकस्थानीयप्रोज्छनकादिना ताः प्रमार्जयन्ति, वृद्धश्रा विकास्तु वीतविकारत्वात्तमपि गृहन्तीति भावः " एतलइ वांदणाना दोष अंकुश अनइ अंबाड नामइ बेउं दोष श्रावक श्राविकानइ तपाना कीधा ग्रन्थनइ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035209
Book TitlePrashnottar Chatvarinshat Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherPaydhuni Mahavir Jain Mandir Trust Fund
Publication Year1956
Total Pages464
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size24 MB
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