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प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक
अचरणा छइ. ते कारणनी वात गरढा जाणइ, वली श्रीमल य. गिरि स्थविर नइ बारइ ए चलवली ओघामांही डांडीयई बांधीजती श्रीपिडनियुक्ति वृत्तिमाहि श्रीमलयगिरि लिखीछइ ह सम्प्रति दशिकाभिः जर या दाण्डिका क्रियते सा सूनीत्या केवलव भवति,न मदशिका" इत्यादि । वली श्रीप्रवचनसारोद्धारनी बृह वृत्तिमांहि पुगि लिखी छ, यदुक्तं-- "इह किल सम्प्रति दशिकाभिः सह या दण्डिका क्रियते सा सूनीत्या केवलव भवति, न सदशिका" इति, ते भणी जाणीयइ छइ-तीयांरइ वारइ पुणि केतलेके गच्छे चलवली हती, { चरणानइ मेलि जाणीय छइ, हिवणाइ वडगच्छां चित्रवालाइ संप्रदायइ डांडीयइ चलवली बंधायइ छइ, अम्हे जोई पूछी देखीनइ ए बोल लिख्या छह, ए वातनउ जे अर्थी हवइ ते पूछेज्यो, परं एह अचंभा थाइ छइ जे तपागच्छ कहीयइ छइ चित्रावलना संप्रदाय, ते चित्रवालनइ चलवली थाइ नइ तपांनइ रजोहरणइ चलवली न थाइ त उ ए तपा चित्रवाल गच्छनो संप्रदाय किम कहइ छइ ? ए पूछिवउ, वली तपानइ रजोहरण ऊपरि ऊननी निसीज्जा बांधीयइ छइ, ए वडगच्छा तथा चित्रवालना संप्रदाय नथी, तेहनइ
ओघइ ऊपरि सूत्रनी निसीज्जा दीसइ छइ, तपानइ ऊननी निसीज्जा घातीजइ छइ, ते केहना संप्रदायनी आचरणा छइ? पूछीज्यो ।
तथा रजोहरण ऊपरि सूत्री अनइ ऊननी बिन्हे ए निसीज्जा जोइयइ पां ऊननी जे तीजी निसीज्जा छइ ते पाउंछणउ छइ, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com