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प्रश्नोत्तर वीसमो
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जइ तेह विलाइनइ बइसीयइ तेह करी गुरुना पग भाटकीयइ चली गृहस्थ'नइ चलवलादि अरणछत क्रिया करतां धरती पूंजिवा पी इतर वारू, परिण बइ सिवानइ काजि पंछणा जूआ करियइ क्रिया करतां ते ऊपरिली ऊननी निसीज्जा न बिछाइयइ तथा गुरुजीना पग जइ ऊननी निसीज्जा साथि न पूंजीयइ गृहस्थनइ धरती पूंजिवानइ काजि न दीजइ तर तेह ऊननी निसीज्जानउ स्यउ प्रयोजन ? ते भरणी बीजा गच्छांनी परि अधिक उपकरण जाणी ओघा ऊपरि ऊननी निसीज्जा नही बांधता, तथा वली "छप्पइयपणगरक्खा" इति बृहत्कल्पवचन थकी ऊंननउ वस्त्र मइलउ थाइ तिहां फूलगि थाइ, एवं ज्ञेयं ।
हिवरणां संवत् १६५४नइ टांगइ पासचंदीया नागोरी तपा तेहने यतिए पिए श्रोघा थकी ऊननी निसिज्जा छोडीनइ सूत्रनीज १ निसिज्जा ओघा ऊपरि बांधीयइ छइ, पूछी जोज्यो । तथा श्रावक क्रिया करण कालइ रजोहरण न ल्यइ, किन्तु पूंजिवानी वेताये यति पासि मांगी ल्यइ, “साहुसगासाओ रयहरणं निसेज्जं वा मग्गइ" इति आवश्यक चूर्णिवचनात् । अथवा चलवलइ करी घरे सामायिक करतां पूंजइ इम शास्त्रे छइ, अनइ ऋषिमती क्रिया करतां वांदरणा देतां काउसग्ग करतां चलवला डावइ हाथि राखइ छइ पिए "वांदणा देतउ श्रावक चलक्लइ करी प्रमार्जिवानउ कार्य करइ, पुगि महात्मानी परि मुख आगलि धरइ नहीं " इति तपागच्छीय सोमसुन्दरसूरिकृत श्री आवश्यक वालावबोधई लिख्यउ छइ, तथा
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