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________________ • प्रवन्धावली. मय एक परमात्मा सदा ध्यान में रहे। नव से जीव आदि ६ तत्व सूवित होते हैं। इनका भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें। नवै से अरिहन्न मादि ६ पद होता है इनको सदा स्मरण रखें। चौदह से उत्पादना आदि १४ पूर्व ज्ञात होता है इनका सारभूत पूर्वोक्त नघ पद है। इन पूर्वो से ज्ञान प्राप्त हुए धर्मोपदेशकगण आप लोगों की ज्ञान वृद्धि करें। अन्त में चाहड़ नाम के कवि जप्पै अर्थात् कहते हैं कि भुव अर्थात् पृथ्वी में रयण दिन ( गत दिन ) आप लोग अभय ( निर्भय ) रहें । मैंने ये सब ज्ञान गुरुमुख प्रमाण से कहा है ये सब आप लोगों की रक्षा करते रहें। इस शेष पद के विषय में कवि जयलाल जी से मेरा मतभेद है जिसे 'मगाशिष भाग्य' के पृष्ठ ४२ में उन्हों ने कृपया सूचित किया है। भाप 'हिन्याण' को 'हित्याण' सिद्ध करते हुए उसका अर्थ यह करते हैं कि जिप्त समय जैनियों ने अपने पुरोहित भोजकों को लाग मर्याद नहीं दी उस समय उन लोगों ने आत्मघात किया । पश्चात् जेनी लोग लाग मर्याद देने लगे और आशीर्वाद में कहते हैं कि उनका हित्याण ( हत्या ) से एते ( २७ से १४ तक ) तुव अर्थात् तुम्हारो ( यजमानों की ) रक्षा करें। मेरे विवार से उनका पाठ और अर्थ ( देवो पृ० १२,२२ ) सर्वथा भ्रमपूर्ण विदित होता है। कारण प्रथम तो आशोर्वाद में हत्या आदि शब्दों का प्रयोग नहीं होता क्योंकि यह अमंगलवावा शब्द है। दूसरे यह कि जब भोजक ब्राह्मण थे तो एक सामान्य लाग के लिये आत्मघात, जो कि उनके धर्मानुसार भो महापाप समझा जाता है, नहीं किये हांगे। यदि किसी कारणवश ऐसी परना हुई भी हो तो ऐसे निन्दनीय विषय को प्रसिद्धि में लाना सम्भव नहीं दिखता। अद्यावधि भोजक लोग श्रीपार्श्वनाथ की स्तुति में अच्छे २ कवित रचना करते हैं। एक नमूना देखिये : जनम बनारस थान, मात बामा कुलनन्दन । पिता राय भश्वसेन, कमठ को मान विहंडन । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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