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________________ * ५४ . * प्रबन्धावली * हमने जो भाषा कवियों का इतिहास लिखने के लिये प्राचीन ग्रन्थों और कवि वृत्तांतों की खोज को थी तो उस प्रसंग में कुछ कविता ऐसी भी मिली जो कान्य कुशला कमलाओं के कोमल मुखार्विन्दा की निकली हुई थीं। हमने उसीको संग्रह करके यह छोटा सा प्रन्थ बनाया है और 'महिला मृदुवाणी' नाम रक्खा है।" इस प्रन्य में मुन्शीजो ने ३५ महिलाओं का जोवन-चरित्र और काव्य रचना का वर्णन किया है। इसकी सूची में एक ओसवाल जाती की ललना का नाम देखकर मैंने उत्साह से पढ़ा। सूची की १६ वीं संख्या में “रत्न कुवरी बीबी, जाती ओसवाल, स्थान काशी और संवत् १८४४” यह लिखा है और इनका वर्णन पृष्ठ ७२-७४ में है। पाठकों के कौतुहलार्थ उसका कुछ अंश यहां उद्धृत किया जाता है: ___ “ये कविया फुलांगना जगत सेठ मुरशिदाबाद के घराने में हुई है। इनकी कविता मति रुचिर और रसमयी हैं इन्होंने 'प्रेम रत्न' नामक एक प्रन्थ संवत् १८४४ में बनाया था जिस का भगवत् भक्तों में बहुत प्रचार है क्योंकि उसमें श्रीकृष्ण ब्रजवन्द आनन्द कन्द की लीलाओं का उल्लेख परम प्रेम और प्रचुर प्रीति से किया गया है।" भारत गवर्नमेण्ट के विद्याविभाग के सुविख्यात ग्रन्थकार राजा शिव प्रसाद सितारेहिन्द जो मभी कई वर्ष पहले तक विद्यमान थे इन्हीं रन कुवरीजी के पोते थे। इन्होंने 'प्रेमरत्न' प्रन्थ के विज्ञापन में भपनी दादी के गुणों का बखान इस प्रकार किया है। "वे संस्कृत में बड़ी पण्डिता थी। छहों शास्त्र की वेत्ता, फारसी भाषा भी इतनी जानती थी कि मौलाना रूम की 'मसनवो' और 'दोषान शम्सत वरेज़' जब कभी हमारे पिता पढ़ कर सुनाते तो वह उसका सम्पूर्ण आशय समझ लेतीं। गाने बजाने में भत्यन्त निपुण थी और चिकित्सा यूनानी और हिन्दुस्तानी दोनों प्रकार की जानती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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