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राजगृह के दो हिन्दी लेख
भारत की प्राचीन नागरियों में राजगृह की गणना भी है। इस स्थान का वर्णन बहुत से प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। जैनियों के बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी का जन्म, दीक्षा यहीं हुई थी। उन लोगों के शास्त्रानुसार इस घटना को कई लान वर्ष बीत चुके हैं। हिन्दुभों के प्रन्यों में खास श्रीकृष्ण और जरासंध की कथाओं का स्थान भी यही था। बुद्धदेव का भी यही लीला-क्षेत्र था।
बिहार उड़ीसर प्रांत के बिहार के दक्षिण में गया जिले के समीप चही राजगृह आज तक वर्तमान है। प्राचीन राजगृह नगरी के स्थान निर्देश के विषय में बड़े बड़े विद्वानों और पुरातत्वों के विचारों पर मैं विवेचन करने में असमर्थ हूं। केवल इतना हो सूचित करना आव. श्यक है कि वहां पर जो कुछ ठण्ढे और गरम जल के कुण्ड विद्यमान हैं, उनका लेख प्रायः सभी प्राचीन प्रन्यों में है। माज मैं पाठकों के सन्मुख जो दो हिन्दी लेख उपस्थित करता है, वे इन्हीं कुण्डों में लगे हैं। इनमें से पहला लेख संवत् १६०४ का वैभारगिरि के नीचे सत. धारा ( सप्तधाग ) में पूरब को दीवार पर लगा है और दूसरा विपुल. गिरि के नीचे सूर्यकुण्ड की पश्चिमी दीवार पर लगा है। दोनों लेख काले पत्थर पर खुरे हैं। इन दोनों लेखों का अक्षरान्तर इस प्रकार है
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