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• प्रवन्धावली.
लिपि की भाषा के विषय में यहां केवल इतना ही कहना है कि मैं फ़ारसी भाषा से परिचित नहीं हैं, परन्तु शिलालेख का बंगला और हिन्दी भाषा की लिखावट आधुनिक नहीं है। हिन्दी और फ़ारसी के लेख पद्य में हैं और बंगला लेख गद्य है। ऐतिहासिक दृष्टि से लेख में जो जो साधन वर्तमान है, उनका खोज की आवश्यकता है।
यह लेख पहले मैंने "बंगोय साहित्य परिषद्” को पत्रिका में प्रकाशित किया था; परन्तु अभी तक राजा गन्धर्वसिंह के विषय में कुछ विशेष पता नहीं लगा है।
शिलालेख का अदरान्तर
( ऊपर के नक्शे की बेल में ) धोकृष्ण वासुदेव जू सदा सहाई । ( नीचे के नकशे का बेल में )
था गनेसाय न्म श्री श्राः ॥ ( दाहिने नकशे को बेल में )
॥ श्री रघुनाथाय नमः ॥ (बाएँ नकशे की बेल में )
श्रो लछमनाय नमः ॥
(ऊपर की तरफ हिन्दी में) (१) संवत् १७८१ बैसाष मास सुदि तीज ॥ भी नप गंधर्वसिंध
भुव मोल ले वयौ धर्म को वोज ॥ देवपुरी अस्थातु य (२)ह वागु गंग के तीर ॥ जर परीदी लोनों सोई श्री हरि
सुनन को धीर ॥ रतनेसुर की नारि ने दयौ पुसी करि
मोलाथ (३)रि रोपी महाराज ने धर्मपुरी अडोल ॥ उत्तर देवीपुर बसे
पछिम गंगा आलि ॥ मेंद बहादुरपुर लगी दछिन (४) पूरव पालि ॥ वीघा वीस पर दोय हैं आठ विसे परिमांन ॥
हरि मंदिलु कीन्हों तहां वाध्यो कृप निवांन ॥५॥
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