________________
प्राकथन
हमारे देश के विभिन्न समाजों और सम्प्रदायों के साहित्य, कला
और सभ्यता के विषय में जिन्होंने थोड़ी बहुत भी आलोचना की है, अथवा सुनी है, वे यह स्वीकार करेंगे कि जैनियों का प्राचीन साहित्य अत्यन्त श्रेष्ठ और विशाल है । यद्यपि इस साहित्य का अधिकांश भाग प्राकृत और मागधी भाषा में लिखा गया था; किन्तु मनीषी व्यक्ति जानते हैं कि संस्कृत में भी इस समाज द्वारा रचा हुआ साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। तदतिरिक्त राजस्थानी, गुजराती, हिन्दी और तामिल इत्यादि भाषाओं में भी जो जैन-साहित्य मिलता है, वह अत्यन्त उच्च श्रेणी का है। प्राकृत के लिये सुप्रसिद्ध विद्वान् जैकोबी ने एक बार कहा था कि यदि जैन-साहित्य निकाल लें तो प्राकृत में कुछ नहीं बचेगा। और यही बात हाल ही में गुजराती और राजस्थानी के बारे में कही गई है। बारहवें गुजराती साहित्य-सम्मेलन में इतिहास-पुरातत्व परिषद् के अध्यक्ष पद से श्री मुनि जिनविजयजी ने कहा था- "इस तरह के संकड़ों जैन पण्डित हुए हैं जिन्होंने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और गुजराती भाषा में हजारों ग्रन्थ लिखे हैं।” दक्षिण की कनाड़ी, तामिल आदि भाषाओं के अनेक प्रन्थ भी जैनियों के ही सिद्ध हुए हैं। ऐसा कहा जाता है कि तामिल का 'कुरल' नाम का सुप्रसिद्ध प्रन्थ भी जैनाचार्य की ही रचना है। विषय की कसौटी से देखें, तो भी एक सम्प्रदाय विशेष का साहित्य
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com