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• प्रबन्धारली.
(३) सं० १४८६, धमदत्त चरित्र-दयासागर सूरि कृत । इस समय के निम्न लिखित ग्रन्थ और भी मिले हैं।
(४) हंस वच्छ रास। (५) शोलरास। दोनों के कर्ता विनयप्रभ उपाध्याय हैं। (६) सं० १४१३, मयणरेहा रास-हरसेवक मुनि कृत। (७) सं० १४५०, आराधना गस-सोमसुन्दर सूरि कृत । (८) सं० १४५५, शांतरस गस-मुनि सुन्दर कृत ।
पंडित मनसुखलाल कीरतचन्द मेहता ने अपने जैन साहित्य के निबंध में निम्नलिखित तीन अन्थों का उल्लेख किया है।
(६) सं० १४२३, शिवदत्तरास-सिद्धसूरि छत (पाटण भंडार)
(१०) सं० १४२६, कलिकालरास-हीरानन्दसूरि कृत ( जेसलमेर भंडार)
(११) सं० १४८५, विद्याविलास रास-(भडोच नगर भंडार )
इनके सिवा मुझे (१२) सं १४८१ का उपाध्याय जयसागर कृत 'कुशलमूरि स्तोत्र' मिला है। इसके आदि और अन्त की कविता इस प्रकार है। प्रारंभ-रिसह जिणे.सर सो जयो, मंगल केलि निवास।
वासव वंदिय पय कमल, जग सह पूरे आस ।।
... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... मन्त-संवत् बौदह इक्यासी बरसे मुलक वाहणपुर में मन
हरषै अजिय जिनेसर वर भवणे । कीयो कवित्त ऐ. मंगल कारण विघन हरण सहु पाप निवारण कोई मत संशों धरो मने ॥१॥ जिम जिम सेवै सुस्नर राया श्री जिनकुशल मुनीसर पाया जय सायर उवझाय थुणे। इम जो सद गुरु गुण अभिनंदे ऋद्धि समृद्धे सो चिर न मन बंच्छित फल मुझ हुवो ए ॥ २॥
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