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________________ * प्रबन्धावली. * १८१ * गये। उन्हीं कीतियोंका कुछ अंश :आज आप लोगोंके सम्मुख उपस्थित किया गया है। मैं अब उन मित्रोंको धन्यवाद देता हूं जिन्होंने अपनी यह सब अमूल्य सामग्री हमें सौंपकर प्रदर्शनी को सफल बनानेमें हमारा हाथ बटाया है तथा जिन्होंने शारीरिक, मानसिक, और अन्यप्रकारसे इस काममें सहायता दी है। अब मैं आप लोगोंका समय लेना नहीं चाहता केवल अपने सहयोगी मित्र डा. हेमचन्द्रजी जोशीसे अनुरोध करूगा कि आप इस विषय पर अपने कुछ विचार प्रकट करें। खनामधन्य जगत विख्यात डा० रवीन्द्रनाथ टैगोर महोदयने भी हिन्दी साहित्य सम्मेलनकी तथा साहित्य-प्रदर्शनी की पूर्ण सफलताके लिये अपनी आन्तरिक शुभेच्छा का संदेशा भेजा है और वे आशा रखते हैं कि समस्त साहित्य और कला-प्रेमी सच्चेजन पारस्परिक एकताके सच्चे भावसे बंधे रहकर कार्य में अग्रसर होते रहेंगे। अखिल भारतवर्षीय हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, वीसवां अधिवेशन के अवसर पर 'साहित्य-प्रदर्शना' के मंत्री पदसे दिया हुआ भाषण (सं० १९८८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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