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________________ लोकमान्य का संस्मरण आज मैं जिस पत्र के लिये दो अक्षर लिख रहा हूं वह 'लोकमान्य' है, यह नाम जब कहीं सुनने में अथवा देखने में आता है उस समय भारत के सर्वश्रेष्ठ पुरुष की स्मृति ताजी हो जाती है । उस पुरुषरत्न लोकमान्य के प्रति जनता ने एक समय किस तरह की अगाध भक्ति और श्रद्धा दिखलाई थी, तथा हार्दिक प्रेमका परिचय दिया था, उसका दृश्य मेरे नेत्रों के सन्मुख उपस्थित हो जाता है। वह मेरे हृदयपटपर ऐसा अङ्कित है कि आजीवन भूला नहीं जा सकता । बम्बई की वह मर्मस्पर्शी घटना जो मैंने उस समय देखी थी, वैसी शायद ही कहीं देखने में आयगी । पुरातत्व विषय शोधका प्रेमी होनेके कारण पूनेके प्रसिद्ध भांडार - कर पुरातत्व भवनको एक बार देखनेकी मेरी इच्छा बहुत समय से थी। एक बार काठियावाड़की यात्राका इरादाकर मैं बम्बई पहुंचा । उस समय ऐतिहासिक विद्वान् मुनि जिनविजयजी और मेरे मित्र स्वर्गीय आर० डी० बनर्जी साहेब पूनेमें थे । बम्बई पहुंच कर मैंने पूने जानेका निश्चय किया और यथा समय पूनेके दर्शनीय स्थान देखकर और मुनि महाराज के आतिथ्य का सौभाग्य प्राप्त करनेके बाद बम्बई लौट आया। यहां कुछ समय रहकर शीघ्र ही खाने होनेका विचार कर रहा था । इसीलिये शामको समान वगैरह खरीदनेके लिये बाजार में गया था । मैं एक दूकान में था, वहीं लोकमान्यजी की पीड़ा वृद्धि और संकटापन्न दशाकी खबर मिली। खबरका पहुंचना था कि बाजार की सभी दुकानें बन्द होने लगीं । सर्वत्र सन्नाटा छा गया, मानो लोगोंके अपने अपने घरमें ही कोई महान विपद उपस्थित हुई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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