SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रोसवाल समाज का अग्निकुण्ड मैं भी इस विषय पर दो अक्षर लिखने का साहस कर रहा हूं। सहृदय पाठक यह न समझें कि मैं अपनी प्रशंसा, अथवा रौप्यपदक प्राप्तिको आशा से यह लिख रहा हूं, बल्कि ओसवाल नवयुवकों के सन्मुख अपना विचार प्रगट करना एक कर्त्तव्य सोच कर ही कुछ लिखना उचित समझता हूं। इससे यदि विचारशील पाठक कुछ भी सार ग्रहण करेंगे तो मैं अपना परिश्रम सफल समदूंगा। देखिये, "ओसवाल समाजका अग्निकुण्ड" इस शीर्षक में 'ओसवालसमाज' गुणवाचक है और 'अग्निकुण्ड' मुख्य शब्द हैं जिसका अर्थ स्पष्ट है। जिस कुण्ड में अग्नि विद्यमान है उसमें किसी को भी कुछ प्राप्ति की आशा नहीं रहती है-सब स्वाहा हो जाता है। जब तक किसी दूसरे की सहायता से उस अग्निकुण्ड से अलग न हो सकेंगे तब तक बचने की आशा दुर्लभ है। उस अग्निकुण्ड को शीतल कर दिया जाय अथवा पूर्ण रूपसे ध्वंस कर दिया जाय तब ही समाज की रक्षा हो सकती है। ओसवाल नवयुवक समिति के पत्र के नान्दीमुख ( सिंहावलोकन ) से ही यह विषय छिड़ा हुआ है। पश्चात् कई संख्याओं में कई एक सजन इस विषय पर अत्युत्तम मर्मस्पर्शी प्रबंध लिखते आये हैं; किन्तु इस गहन विषय पर उन लेखों से शायद पूर्ण रूपसे सन्तोष नहीं हुआ होगा इसी कारण 'प्रतियोगिता' में पुनः यही विषय रखा गया है। अब यह समस्या उपस्थित हुई कि वह परम शत्र महा अनर्थकारी ऐसा कौनसा अग्निकुण्ड है जिससे ओसवाल समाज का ध्वंस निश्चित है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy